**कविता **
# विषय .मजदूर की व्यथा ....
माँ अब कभी मैं ,शहर नहीं जाऊँगा ।
रुखी सुखी रोटी ,खाकर जी लूंगा ।।
पर कष्ट उठाने ,वहाँ नहीं जाऊँगा ।
वहाँ तो धन वालों ,का बोलबाला ।।
पापाचार का ही ,मुँह काला ।
भाईचारे को सब ,भूल गये ।।
केवल स्वार्थ के ,रिश्तें रह गये ।
सेठ का काम था ,तब तक खिलाया ।।
अब पल में मुझें ,अंगुठा दिखाया ।
भुखे प्यासे हम ,इधर उधर भटेक ।।
पर किसी ने हमें ,खाना नहीं खिलाया ।
मानवता तो ,शर्मसार हो गयी ।।
सिर्फ दिखावे के ,आंसू बहाये ।
अट्टारी महल तो ,बहुत बडे वहाँ ।।
पर दिल उनका ,बहुत छोटा देखा ।
माँ मेरा सारा ,सपना ही रुठा ।।
बृजमोहन रणा ,कश्यप ,कवि ,अमदाबाद ,गुजरात ।