ए प्रियतम
मेरे अंतर्मन के स्वरो में,
गूंज रही तुम्हारी ही वाणी,
ह्रदय हो रहा आतुर ,
सुनने को मिलन की आकाशवाणी।
अब रहने भी दो , मत खेलो,
आंख -मिचौली का ये खेल।
मुझको खुद में शामिल कर लो,
नील गगन में जैसे मेघ।
ए प्रियतम,
प्रतीक्षा हो चुकी बहुत अब ,
खुद को तुम में अर्पित कर दू, मैं मीरा , तुम वासुदेव।