"भूख़ कि भट्टी"
मै तो वही पर हूँ
पर जो आदमी मेरे बगल में
चल रहा था
भूख की भट्टी में चढ़े भगोने के
भाप से उड़ गया?
किस्मत की धारदार कटारी
दिल को छील रही है
वह मुस्कराता खिलखिलाता हाथ
जो पीठ पर रख जाएँ
वह कहाँ है?
पिस्तौल के ख़ाली खोखे की
उड़ती बारूद सी दुर्गन्ध
झूल रही है नाक़ के भीतर
बाल्टी में भरा ठंडा पानी
मानों कूद गया कुएं में
कुएं की बाल्टी खड़ी है
अदालत के सामने हाथ जोड़े
अदालत भी डंठी पड़ी है
सूख़ चुकी है पेन जज कि
फैसला कहाँ है?
जूता मेरा फटा पड़ा है
धरती चुभती मै सहता जाता
चुप रह जाता हूँ
कैसे पूछु किसी से मै
दूकान कहाँ है?
शिव भरोस तिवारी 'हमदर्द'