बेशक, में अल्फाज़ बनकर गुजरा हुं,
कुछ नहीं हयाति मेरी, ज़रा गुजरा हुं;
हंसीन कोई गुलदस्ते में, मुस्कुराता है,
नजाकत लिए में , सरेआम गुजरा हुं;
मेरी आंखों का , चश्म ए दिल नूरानी,
अहेसास कोई अपने पन, में गुजरा हुं;
ख्वाब है या हकीकत, कुछ पता नहीं,
सुमसाम राहें वफ़ा में गुमनाम गुजरा हुं;
आनंद, सहज है, धौसला ए दिल ज़रा,
दिल ए नूर हकीकी में ,खास गुजरा हुं;