आज की प्रतियोगिता ।
विषय .# जंगली ।
विधा .कविता ।
आजकल लोग जंगली ,होते जा रहें है ।
सभ्यता और संस्कृति ,भुलते जा रहे है ।।
मानवता का मजाक ,बना रहे है ।
दानव बन ,आबरु लुटते जा रहें है ।।
देश में रह कर ,देश से गद्दारी करते जा रहे है ।
मानव होकर ,मानव को ही मारते जा रहे है ।
प्रेम का रिश्ता ,अब नहीं रहा दिलों में ।।
भाईचारे का रिश्ता ,अब भुलाते जा रहे है ।
अपने स्वार्थ में बहुत अंधे हुए है ।।
अपने ही भाईयों को ,सरेआम लुटते जा रहें है ।
गरीबों को रोटी देना ,मुनाशिब नही समझते है ।
गरीबों के हक की ,रोटी छिन कर खा रहें है ।।
बृजमोहन रणा ,कश्यप ,कवि ,अमदाबाद ,गुजरात ।