पकड़ के उंगली बाबा की चलती थी मै,जैसे रानी हूँ .
प्रेम भरे स्वर से सम्बोधित करते दुर्गारानी हूँ .
लाड़ प्यार मे थी बिगड़ी मै खुद को समझे रानी थी.
चुटकी काटूं ,उनको मारू ऐसी तो एक कहानी थी .
प्यार दिखाते और बहलाते मै जिद्दी थी हार ही जाते.
दुनियादारी से ,न था मतलब अपनी,हर बात मनानी थी.
बचपन छूटा ,उंगली छूटी , कहते सब मुझको बड़ी हो गई.
सिला मिला जिम्मेदारी का वो सुख अतीत की घड़ी हो गई.
#रानी