Hindi Quote in Religious by ब्रह्मदत्त त्यागी हापुड़

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अब शुभ नवरात्रे चल रहे हैं और कल माता का आठवां नवरात्रा है यानी के मां महागौरी के रूप में कल आने वाली उनकी छवि को हम आज उनकी आरती से परिपूर्ण करते हैं ब्रह्मदत्त
दुर्गा आरती
दुर्गा आरती
जगजननी जय जय, माँ जगजननी जय जय, भयहारिणी,
भवतारिणी, भवभामिनि जय जय | जगजननी...
तू ही सत्-चित्-सुखमय, शुद्ध ब्रह्मरूपा, सत्य सनातन, सुन्दर पर-
शिव सुर-भूपा | जगजननी....
आदि अनादि, अनामय, अविचल, अविनाशी, अमल, अनन्त,
अगोचर, अज आनन्दराशी | जगजननी...
अविकारी, अघहारी, अकल कलाधारी, कर्ता विधि, भर्ता हरि, हर
संहारकारी | जगजननी...
तू विधिवधू, रमा, तू उमा महामाया, मूल प्रकृति, विद्या तू, तू जननी
जाया | जगजननी...
राम, कृष्ण तू, सीता, ब्रजरानी राधा, तू वांछा कल्पद्रुम, हारिणि सब
बाघा | जगजननी...
दश विद्या, नव दुर्गा नाना शस्त्रकरा, अष्टमातृका, योगिनि, नव-नव
रूप धरा | जगजननी...
तू परधामनिवासिनि, महाविलासिनि तू, तू ही श्मशानविहारिणि,
ताण्डवलासिनि तू | जगजननी...
सुर-मुनि मोहिनि सौम्या, तू शोभाधारा, विवसन विकट सरुपा,
। प्रलयमयी, धारा | जगजननी...
तू ही स्नेहसुधामयी, तू अति गरलमना, रत्नविभूषित तू ही, तू ही
अस्थि तना | जगजननी...
मूलाधार निवासिनि, इह-पर सिद्धिप्रदे, कालातीता काली, कमला तू
वरदे | जगजननी...
शक्ति शक्तिधर तू ही, नित्य अभेदमयी, भेद प्रदर्शिनि वाणी विमले
वेदत्रयी | जगजननी...
हम अति दीन दु:खी माँ विपत जाल घेरे, हैं कपूत अति कपटी, पर
बालक तेरे | जगजननी...
निज स्वभाववश जननी दयादृष्टि कीजै, करुणा कर करुणामयी चरण
शरण दीजै|
जगजननी जय जय, माँ जगजननी जय जय, भयहारिणी,
भवतारिणी, भवभामिनि जय जय |
आरती के अंत में माता दुर्गा को बारंबार प्रणाम नमन नमस्कार ब्रह्मदत्त त्यागी हापुड़ एवं सभी भक्तों का
श्री हनुमान जी को ब्रह्मदत्त त्यागी हापुड़ एवं सभी भक्तों का जय श्री राम
श्री हनुमान जी की आरती
"हनुमान जी आरती"
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आरती कीजे हनुमान लला की, दुष्ट दलन रघुनाथ कला की।
जाके बल से गिरिवर कांपे, रोग दोष जाके निकट न झांके।
अंजनी पुत्र महा बलदाई, संतन के प्रभु सदा सहाई।
दे वीरा रघुनाथ पठाये, लंका जारि सिया सुधि लाई।
लंका सी कोट समुद्र सी खाई, जात पवन सुत बार न लाई।
लंका जारि असुर सब मारे, राजा राम के काज संवारे।
लक्ष्मण मूर्छित परे धरनि पे, आनि संजीवन प्राण उबारे।
पैठि पताल तोरि यम कारे, अहिरावन की भुजा उखारे।
बाएं भुजा सब असुर संहारे, दाहिनी भुजा सब सन्त उबारे।
आरती करत सकल सुर नर नारी, जय जय जय हनुमान उचारी।
कंचन थार कपूर की बाती, आरती करत अंजनी माई।
जो हनुमानजी की आरती गावै, बसि बैकुण्ठ अमर फल पावै।
लंका विध्वंस किसो रघुराई, तुलसीदस स्वामी कीर्ति गाई।
ब्रह्मदत्त त्यागी हापुड़

Hindi Religious by ब्रह्मदत्त त्यागी हापुड़ : 111381367
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