[शुभ संध्या वंदन मंगलवार जय बजरंगबली हनुमान जी आपको ब्रह्मदत्त त्यागी हापुड़ एवं सभी भक्तों का प्रणाम नमन नमस्कार है] ब्रह्मदत्त त्यागी हापुड़:
॥दोहा॥
श्रीगुरु चरन सरोज रज निज मनु मुकुरु सुधारि
बरनउँ रघुबर बिमल जसु जो दायकु फल चारि
बुद्धिहीन तनु जानिके सुमिरौं पवन-कुमार।
बल बुधि बिद्या देहु मोहिं हरहु कलेस बिकार ॥
ब्रह्मदत्त त्यागी हापुड़
॥चौपाई॥
जय हनुमान ज्ञान गुन सागर ।
जय कपीस तिहुँ लोक उजागर ॥१॥
राम दूत अतुलित बल धामा।
अञ्जनि-पुत्र पवनसुत नामा ॥२॥
महाबीर बिक्रम बजरङ्गी।
कुमति निवार सुमति के सङ्गी ॥३॥
कञ्चन बरन बिराज सुबेसा ।
कानन कुण्डल कुञ्चित केसा ॥४॥
हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजै ।
काँधे मूंज जनेउसाजे ॥५॥
सङ्कर सुवन केसरीनन्दन ।
तेज प्रताप महा जग बन्दन ॥६॥
विद्यावान गुनी अति चातुर।
राम काज करिबे को आतुर ॥७॥
प्रभुचरित्र सुनिबे को रसिया।
राम लखन सीता मन बसिया ॥८॥
सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा।
बिकट रूप धरि लङ्क जरावा ॥९॥
भीम रूप धरि असुर सँहारे।
रामचन्द्र के काज सँवारे ॥१०॥
लाय सञ्जीवन लखन जियाये।
श्रीरघुबीर हरषि उर लाये ॥११॥
रघुपति कीही बहुत बड़ाई।
तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई ॥१२॥
सहस बदन तुह्मारो जस गावें।
अस कहि श्रीपति कण्ठ लगावै ॥१३॥
सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा ।
नारद सारद सहित अहीसा ॥१४॥
जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते ।
कबि कोबिद कहि सके कहाँ ते ॥१५॥
तुम उपकार सुग्रीवहिं कींहा।
राम मिलाय राज पद दीह्ना ॥१६॥
तुहारो मन्त्र बिभीषन माना।
लकेस्वर भए सब जग जाना ॥१७॥
जुग सहस्र जोजन पर भानु।
लील्यो ताहि मधुर फल जानू ॥१८॥
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं।
जलधि लाँघि गये अचरज नाहीं ॥१९॥
दुर्गम काज जगत के जेते।
सुगम अनुग्रह तुह्मरे तेते ॥२०॥
राम दुआरे तुम रखवारे।
होत न आज्ञा बिनु पैसारे ॥२१॥
सब सुख लहै तुह्मारी सरना ।
तुम रच्छक काहू को डर ना ॥२२॥
आपन तेज सह्मारो आपे।
तीनों लोक हॉक तें कॉपै ॥२३॥
भूत पिसाच निकट नहिं आवे।
महाबीर जब नाम सुनावै ॥२४॥
नासे रोग हरै सब पीरा।
जपत निरन्तर हनुमत बीरा ॥२५॥
सङ्कट तें हनुमान छुड़ावै।
मन क्रमबचन ध्यान जो लावे ॥२६॥
सब पर राम तपस्वी राजा।
तिन के काज सकल तुम साजा ॥२७॥
और मनोरथ जो कोई लावै।
सोई अमित जीवन फल पावे ॥२८॥
चारों जुग परताप तुह्मारा।
है परसिद्ध जगत उजियारा ॥२९॥
साधु सन्त के तुम रखवारे ।
असुर निकन्दन राम दुलारे ॥३०॥
अष्टसिद्धि नौ निधि के दाता।
अस बर दीन जानकी माता ॥३१॥
राम रसायन तुहारे पासा।
सदा रहो रघुपति के दासा ॥३२॥
तुह्मरे भजन राम को पावै।
जनम जनम के दुख बिसरावे ॥३३॥
अन्त काल रघुबर पर जाई।
अन्त काल रघुबर पुर जाई।
जहाँ जन्म हरिभक्त कहाई॥३४॥
और देवता चित्त न धरई।
हनुमत सेइ सर्व सुख करई ॥३५॥
सङ्कट कटै मिटै सब पीरा।
जो सुमिरै हनुमत बलबीरा ॥३६॥
जय जय जय हनुमान गोसाई।
कृपा करहु गुरुदेव की नाई॥३७॥
जो सत बार पाठ कर कोई।
छूटहि बन्दि महा सुख होई ॥३८॥
जो यह पढ़े हनुमान चालीसा।
होय सिद्धि साखी गौरीसा ॥३९॥
तुलसीदास सदा हरि चेरा।
कीजै नाथ हृदय महें डेरा ॥४०॥
॥दोहा॥
पवनतनय सङ्कट हरन मङ्गल मूरति रूप
राम लखन सीता सहित हृदय बसहु सुर भूप
ब्रह्मदत्त त्यागी हापुड़