मैं लिख दू संघर्षों की गाथा अल्फाज़ो मे
मगर डर हैं की, किल्क को भी पसीना छूट जायेगा
उतार दू पीड़ा किसी कोरे प्रस्तर पर
मगर डर हैं की, प्रस्तर भी लहू मे डूब जायेगा
पा जाऊ हर मुकाम , कमर कस लू जो आगे बढ़ने की
मगर डर हैं की, तू कहीं पीछे ही छूट जायेगा
हुनर हैं मनाने को दुनियां भर को मेरे अंदर
मगर डर हैं की, मेरा दिल ही खुद से रूठ जायेगा
लिख दु खत्म न होने वाली कहानी तेरी मेरी,
मगर डर हैं की, कल्क बिच मे है टूट जायेगा ...
Trisha R S...✍️