कतरे कतरे पर खतरा है खड़ा ,
करुण अवस्था की व्यथा देख ,हर इंसान चुप है खरा ।
फूंक फूंक के कदम , इंसान बड़ा रहा है जरा ,
इस अनदेखे अदृश्य शत्रु से भयभीत है खड़ा ।
करोना के रोने का हाहाकार , पृथ्वी में हर वेश में है खड़ा ,
बारंबार हाथ धोने को इंसान चल पड़ा ।
मुखौटा डाल हर इंसान , अपनी रक्षा कर चला ,
आज नमस्कार की प्रथा सारा जग कर रहा ।
पशु पक्षियों को क्रूर नरभक्षी की तरह जो खा रहा था
आज प्रकृति के आक्रोष से स्वयं की रक्षा ना कर सका ।
इंसान इंसान को मरता देख चुप है खड़ा ,
स्वयं की रक्षा के लिए ,
आज चूहे की तरह हर जातक अपने बिल में है छुपा ।
सैकड़ों विशेषज्ञ एकजुट हो खड़े ,
अपितु इस आपदा का कोई उपचार ना खोज सका ,
प्रलयकारी करोना से ,
हर इंसान मुखौटा डाल छुपता है फिर रहा ।।