मैरी बुझी ख्वाईशो को वो फिर से रोशन कर गया ।
ठहरी आंखों को वह एक मदहोशी दे गया
उसे आशियाने की ललक थी और मेरी कोख सूनी पड़ी थी।
वह मेरे घर ठहर गया और मेरी कोख भर गया।
तमाम बंदिशों को छोड़कर वह मेरा हो गया
कैसे मान लूं धर्म जात पात को मैं
वह गैर मजहबी होकर भी मेरा परिवार हो गया
मेरी बुझी ख्वाहिशों को फिर से रोशन कर गया ठहरी आंखों को मदहोशी दे गया
कुछ तो कसक होगी मेरी इबादतओं में
खुदा गवाह है मुझ में दिल ही ना था...….…अमन......
और वह मुझे मोहब्बतें दे गया