जीवन और नदी
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जीवन है नदी के समान
बहते रहना इसका काम,
राह में कई पड़ाव मिलेंगे,
कहीं शहर कहीं गांव मिलेगें,
सुख-दुख को ऐसा ही जान,
आयेगे ही जीवन में ये मान,
इनसे तू कभी न घबराना,
तेरा काम चलते ही जाना,
अंत में जब यह थक जाती,
समुन्द्र में जाकर मिल जाती,
जीव का भी जब अंत आता,
जाकर परमाता में मिल जाता
उमा वैष्णव
मौलिक और स्वरचित