अगर 70 के दशक की फिल्मों का सा कथानक या फिर देव आनंद या धर्मेंद्र की पुरानी थ्रिलर फ़िल्मों जैसा प्लॉट अब अगर पढ़ने को मिले तो यकीनन आप बोर हो जाएँगे और उसे उबाऊ मान पढ़ना बंद कर देंगे लेकिन अगर वही कहानी लुगदी साहित्य याने के पल्प फिक्शन के बादशाह स्व.वेदप्रकाश शर्मा ने लिखी होगी तो उसमें ज़रूर कोई ना कोई ऐसी खास बात होगी कि आप उसे अंत तक आसानी से पूरा पढ़ जाएँगे। ऐसा ही कुछ मेरे साथ हुआ जब किंडल पर मैंने उनका उपन्यास "विधवा का पति" पढ़ा।
एक बार तो लगा कि बहुत पुराने प्लॉट पर उन्होंने अपनी कहानी का ताना बाना बुना है लेकिन जल्द ही मेरी ग़लतफ़हमी दूर हो गयी जब मुझे इसमें कदम कदम पर रहस्य, रोमांच से दो चार होना पड़ा। एक के बाद एक ट्विस्ट कहानी को अंत तक रोचक बनाते चले गए कि पता ही नहीं चला कि कहानी कब खत्म हो गयी। हिट फ़िल्म के सभी फॉर्मूलों का सही मिश्रण कहानी को अंत तक दिलचस्प बनाता चला गया। अगर पुरानी फिल्मों या उस तरह की कहानियों में आपकी रुचि है तो आपको उनको ये उपन्यास भाएगा। किंडल पर इसे ₹99/- मात्र में खरीद कर पढ़ा जा सकता है।
किंडल के फायदे और नुकसान जल्द ही अपनी किसी पोस्ट में लिखूँगा।