हम गुज़रे अलफाज़ बन के वो क्या जा़ने
खुद बेहयात, अपनी हस्ती से, क्या जा़नेे
वो गुज़रते है , मिजाज़ ए महोबत यहाँ पे,
हम गुज़रे हक हकीकी से, वो क्या जा़ने
बेमतलब तो उठाते नहीं, पाँव अपने ही
खुद से हम बेखुद हो गये , वो क्या जा़ने
खुुबसुरत हाल हाल रखते फजा़ में भी वो
बसंत बहार से हम अन्जा़न ,वो क्या जा़ने
है दर्द ओर ज़ख्मो से, गहेरा रिस्ता दिल से
दिल ए नूर से बेखबर बेजाँन, वो क्या जा़ने
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