मिट्टी के दीए ( लघुकथा) "और इस बार दिवाली के लिए क्या शॉपिंग की ?"ऑफिस में लंच करते हुए सीमा ने अपनी सहेली मीरा से पूछा। "यार पूछ मत। इस बार तो ओवर बजट हो गया है।" "ऐसा क्या खरीद डाला तुमने!" "सारा फर्नीचर बदला है, पर्दे चेंज किए और बड़ा एलईडी लिया है।" "लेकिन दो साल पहले ही तो तुमने घर के रिनोवेशन के समय सारी चीजें बदली थी । फिर इतनी जल्दी?" "सीमा तुझे तो पता है ना, इनके दोस्त रिश्तेदार व सोसाइटी के बारे में । सबके सामने अपना स्टेटस तो मेंटेन रखना ही पड़ता है। बस दीए खरीदने बाकी रह गए हैं। जाते समय ले लूंगी।" " जो चीज दिवाली पर सबसे जरूरी है, वही तुमने अब तक नहीं खरीदी।" "क्या करूं इस आपाधापी में छोटी मोटी चीजें रह ही जाती हैं। देखो ना इन लोगों ने क्या लूट मचा रखी है। दस रुपए के 10 दिन दे दे रहे हैं। मिट्टी को सोने के भाव बेच रहे हैं। पर मजबूरी है भाई खरीदने तो पड़ेगी ही। कौन इनके मुंह लगे। पूजा के लिए 11 दीए तो चाहिए ही।" "क्या कह रही है 11 दीए! इतना बड़ा घर है तुम्हारा उसमें केवल 11 दीयों से रोशनी हो जाएगी।" "तू भी कैसी बात कर रही है सीमा! दीए तो सिर्फ पूजन के लिए है , रोशनी के लिए तो मैंने इस बार नया झूमर व अच्छी क्वालिटी की लड़ियां मंगवा ली है ।" "एक बात कहूं मीना बुरा मत मानना। तुमने दिवाली के लिए लाखों रुपए का सामान खरीदा उस पर कुछ हजार का डिस्काउंट देकर शोरूम व ऑनलाइन वालों ने तुम्हें खुश कर दिया और अपना मुनाफा कमा लिया। लेकिन यह दीए बेचने वाले कितना मुनाफा कमा लेंगे । अगर यह लोग इतने ही धनवान होते तो यूं सुबह से शाम तक पटरी पर कुछ रुपयों के लिए पसीना ना बहाते। दीयों की रोशनी की जगह कोई भी लड़िया या झूमर नहीं ले सकते। इन लोगों से सामान खरीद हम अपने घरों को ही रोशन नहीं करते बल्कि हमारी इस छोटी सी खरीदारी से इनकी दिवाली बड़ी व इन लोगों के घर भी खुशियों की रोशनी से जगमगा उठते हैं।" सरोज स्वरचित व मौलिक