ये माना कि शजर कटने लगे बदली फिजाओं में,
मगर जिंदा दिलों में
प्यार का एहसास रहने दो,
बहुत खुश हो तरक्की,
क्या इसी का नाम है "सागर",
वो पनघट और कुअने पर सजा परिहास रहने दो,
मेरी माँ रोज पीपल छाँव में लोरी सुनाती है,
उसी खातिर सही, पर गाँव का आभास रहने दो।।
-राकेश सागर