कमरे के खालीपन में कुछ तो बात थी , एक अजीब सा सुकून था । वो जो कमरा मेरा था , मेरे दिल का राजदार था । जब भी दिल में कुछ बैचेनी होती थी , या कभी रोने का मन होता था तो उस कमरे कि खाली दीवारों को देख लेती थी । जो अपनी ही एक अलग कहानी बयां करते थे , जहा तेरा मेरा ना होकर सब कुछ अपना था । जिस कमरे की रानी मैं थी , जहा मेरी ही कहानी कुछ सुनहरे अक्षरों में लिखी थी । जहां मैं जैसी थी बस अपने में अच्छी थी ।