इसको दुख कहूं या खुशी पता नहीं दुख तो बस इस बात का है कि जिससे कभी वफा की उम्मीद की , जिसके साथ कभी लगा की में ना हो कर भी हूं । जिसने कभी मेरे जीवन में दुःख ना आने का दावा किया था वहीं मेरे आसुओं का कारण बना । कुछ ज़्यादा ही उम्मीदें कर बैठे थे हम , किसी को अपना सब कुछ मान चुके थे हम । पर अब हम संभले से है , अपनो से ज़्यादा खुद को पहचाने लगे है हम ।