कुदरत का कहर देखो, कुछ अपनोंसे बिछड़ गये। बचे हुवे थे उनके सपने चुर हो गये। बुँद के लिए तरसते थे, वो बाढ़ में बह गये। कही मुक जानवर, कई इन्सान बह गये। फरिश्ते बनकर आसमान , वो दिल में उतर गये। कुदरत को इन्सानियत की मिसाल देकर गये। मंदिर ,मस्जिद, गुरुद्वारा और अस्पताल बह गये। गरीब की झोपडी और अमीरोंके आशियाने तबाह हुवे। सुधरजा इन्सान तु, कुदरत को न आजमा तु। उसके आँगन पर अपना रोब जमा न तु।