थकाहारा मैं जब घर लौटकर आया।
उसके हाथों में पानी का गिलास
और चाय का कप पाया।
तब जोरजोरसे हिलाकर किसीने मुझे जगाया।
आँखे खुली तो सामने
पत्नी को क्रोध में पाया ।
उठकर पलंगपर बैठ गया।तो उसे रहा नहीं गया।
"बैठे क्युँ हो आराम से, ऊठो नलमें पानी आया।
चाय नाश्ता बाहर कर लेना।
उसने फिर दोहराया।
पत्ता नहीं सपने कब सच होंगे।
कब टाँग फैलाकर चैन की नींद सोयेंगें।