हमेशा हमने दूसरो के लिए ही किया है जो भी किया है पर इन सब मैं हमारी खुशियों का क्या ? । पहले मां बाप , फिर शादी के बाद बच्चे और पति पर इन सब मैं हम कहा है हमारी खुशियां कहा है ? । जब हम छोटे होते है तो हमें सिखाया जाता है कि लड़कियों को देर रात तक बाहर रहने की आज़ादी नहीं है समाज क्या कहेगा वो करोगे तो समाज क्या कहेगा । और जब शादी हो जाती है तो अब तुम किसी घर की बहू हो तो उनके तौर तरीकों से रहना पड़ेगा , यहां भी अपने मन का नहीं कर सकते फिर से समाज क्या कहेगा कि कुछ सिखाया नहीं । हर बार सिर्फ हम ही क्यो कुर्बानी दे कभी तो हमे अपने लिए खड़े होना पड़ेगा ,जो बरसो से दबी हुई इक्षाए है उनको तो बाहर निकालना होगा दूसरो के लिए ना सही पर अपने लिए तो कभी तो खड़े होना पड़ेगा ।