कहां गए पापा
रईस हो जाया करते थे ,
पापा के, एक का सिक्का भर से......
वो जादू भरे सिक्के ,कहां जमा हो गए?
वो हमसे, हम उनसे लड़ाते थे लाड़.....
वो मंजर ही ,अब तो फना हो गए।
रोया करते थे छिपकर ,दरवाजे के पीछे
कि आकर हमको, मनालेंगे पापा.....
वो थप्पड़ सब, मां के अदा हो गए।
तृप्त कर दिया करते थे
जरा सी मूंगफलियों में हमको....
वो बरकती-पापा हवा हो गए।
बैठ सिरहाने हमको ,जगाते थे पापा.....
वो पापा ने जाने ,जाकर कहां सो गए।
ढूंढ़- ढूंढ कर लाते थे ,जो खुशियां हमारी
वो खुद न जाने कहां खो गए।
एक मायके में थे , दूजे ससुराल में.....
मेरे दोनों ही "पापा खुदा हो गए।
सीमा शिवहरे" सुमन"