तुम दूर सही पर तेरी यादों को करीब लाती है
धुएं सी नरम उंगलियों से चेहरे को सहला जाती है
जैसे उन दिनों का हसीन
बदला चुका रही हो
पीछे से आके मखमली हथेलियों
से मेरी आंखे छुपा रही हो
जैसे तुम से बातों बातों वाली
पहली चुस्की में
वो कत्थई मलाई
सी चिपक जाती थी ना
Gents लिपस्टिक सी लिपट जाती थी ना
बस वही हर रोज़ आती
याद की मिठास
मुझे सम्भाले हुए है
वही तेरे आने की
तरो ताज़ा आस
मुझे सम्भाले हुए है
लोग समझते हैं मैं भी उन्हीं की तरह
सुबह सुबह महज़ चाय ही पीता हूँ
नासमझों को क्या जरूरत है समझाने की
के मैं रुख़सारी प्याली में तुम्हे जीता है