समूचे विश्व में बुद्ध ही थे जिन्होंने अपनी मूर्ति पूजा का विरोध किया । फिर बुद्ध की मूर्तियाँ क्यों पाई जाती हैं । क्या हम बुद्ध के सच्चे अनुयायी नही हैं ?
बार बार यह प्रश्न मुझे परेशान करने लगा । फिर सोंचा कि आखिर बुद्ध के मना करने के बावजूद अनुयायियों ने ऐसा क्यों किया ?
बहुत सोंचने समझने के बाद समझ में आया कि जब मानव सभ्यता का विकास हुआ, मनुष्य सोंचने समझने लगा तब से ही वह ऐसी शक्तियों से डरता था जिनके वैज्ञानिक तथ्यों से वह परिचित नही था । वह इस भय से मुक्त नही हो पाया जिस कारण चालाक लोगों ने ठगी का जाल बिछाना शुरू कर दिया और उसके भय का व्यापार करने लगे । बुद्ध ने अपने अनुयायियों से मूर्ति पूजा न करने को कहा परन्तु भयभीत लोगों को कुछ तो चाहिए था जिसकी छत्रछाया में रह सकें , इसलिए अनुयायियों ने बुद्ध की मूर्तियों द्वारा लोगों को सन्देश देना चाहा ताकि लोग बुद्ध को भूलें नही और उनके विषय में जानने की जिज्ञासा बनी रहे , वे बुद्ध के ज्ञान को समझें उनकी शिक्षाओं को ग्रहण करें और आडम्बर से दूर भय मुक्त जीवन जिएं ।
यदि बुद्ध की मूर्तियां न होतीं तो शायद ही कोई बुद्ध की चर्चा करता । इस मामले में भारत सबसे आगे होता यहाँ से बुद्ध की शिक्षाएं पूर्णतयः समाप्त हो जातीं इसलिए बुद्ध का सांकेतिक रूप होना अतिआवश्यक था । इसका सबसे बड़ा उदाहरण है कि भारत से जन्में बौद्ध विचार को भारत में ही सबसे कम समझा और जाना जाता है ? यहाँ के लोग हमेशा ही अज्ञात शक्तियों से उम्मीद लगाए रहते हैं और यहीं कुछ लोग ऐसे हैं जो आज भी झूठ और आडम्बर का व्यापार करके लाभ कमाना चाहते हैं । वे कभी नही चाहेंगें कि कोई बुद्ध और उनकी शिक्षाओं को जाने , इसलिए बुद्ध को भी काल्पनिक शक्तियों के साथ जोड़ने का प्रयास किया गया , बुद्ध की बहुत सारी शिक्षाओं को अडम्बरवादियों ने तोड़ मरोड़कर लिखा है , वे बुद्ध को काल्पनिक पात्रों का अवतार तक बताते हैं ।
परन्तु बुद्ध ने स्वयं कहा है "किसी बात को सिर्फ इसलिए मत मान लेना कि बुद्ध ने कहा है " ।
शायद बुद्ध को ज्ञात था कि भय के व्यापारी शांत नही होंगें और मेरे बाद मुझे भी आडम्बर से जोड़ने का प्रयास करेंगे ।
यह लेख मैं इसलिए लिख रहा हूँ कि बहुत से लोगों ने भी मुझसे कहा कि आप मूर्ति पूजा का विरोध करते हैं बुद्ध के अनुयायी हैं जबकि बुद्ध की भी तो मूर्ति पूजा होती है । उनको जवाब देने के उद्देश्य से ही यह लिखना पड़ा कि बुद्ध की मूर्ति पूजा अज्ञानतावश होती है परन्तु बुद्ध के मना करने के बावजूद बुद्ध की मूर्तियां आवश्यक हैं नही तो आज सिर्फ उनकी शिक्षाएं ही नही अपितु यह भी नही पता होता कि बुद्ध जैसा कोई भारत में जन्मा भी होगा ताकि वे बिना किसी तर्क और विरोध के अपना व्यवसाय कर सकते ।
नमोह बुद्धाय
जय भीम
( कवि लक्ष्मी नारायण "पन्ना")