मैं रात का वह हिस्सा हूं
जिसे ना शहर के लोग छु पाते है
और
ना सुबह की रोशनी,
जिसे ना चांद की चांदनी नसीब है
ना सूरज की किरण,
जहां ना चमगादड़ चिल्लाते है
ना भोर के पंछी का गुंजन,
जहां ना अंधेरे का सन्नाटा रहेता है
ना सुबह की औश,
जहां रास्ता भी तन्हा है
और
ना हमसफर ना कोई रहगुजर,
मैं रात का वह हिस्सा हूं,
जहां मैं खुद अपने पास नहीं होता
हा
मगर मैं रात का हिस्सा हूं...