ईनामी पगड़ी (लघुकथा)
एक राजा था। उसने घोषणा की कि जो कोई उसके राज्य के सभी आम नागरिकों को ख़ुश कर देगा, उसे वह भारी ईनाम देगा।
एक बेरोजगार युवक ने ये चुनौती स्वीकार कर ली।वह रोज़ वेश बदल कर घूमता और देखता कि राज्य में कौन दुखी है।
उसे जो भी दीन दुखी दिखाई देता, वह चुपचाप राजा के खज़ाने से कुछ धन चुरा कर उसे दे देता।
कुछ दिन में राज्य में चारों तरफ खुशहाली फ़ैल गई।
जब युवक ने राजा से अपना ईनाम मांगा तो राजा ने तुरंत कोषाध्यक्ष को आदेश दिया कि उसे पुरस्कार में बड़ी राशि दी जाए।
कोषाध्यक्ष ने डरते डरते राजा को बताया - हुज़ूर, आपके खज़ाने में तो एक भी मोहर शेष नहीं बची।
राजा युवक के सामने तो शर्मिंदा हुआ ही, उसे ये चिंता भी सताने लगी कि अब राज्य कैसे चले !
तभी दरबार में महारानी का प्रवेश हुआ। राजा को दुखी देख उसने तत्काल कहा- महाराज, इस आदमी को ईनाम कैसा? बात तो ये थी कि ये राज्य में सभी को ख़ुश कर देगा। किन्तु आप तो दुःखी हैं, फ़िर शर्त पूरी कहां हुई।
राजा की मानो जान में जान आई, उसने युवक को तो शर्त पूरी न करने के कारण राज्य से निकाल दिया पर खुश होकर अपनी पगड़ी रानी को पहना दी।