अच्छा खासा जी रहा था बचपन !
बड़ा कब हो गया पता ही ना चला।
अभी अभी तो स्कूल बेग था कंधोपे,
हाथों ने ऑफिस बेग कब थाम लिया,
पता ही ना चला....
गुजर जाता था दिन हसने खेलने में,
मुस्कराते पल कब खामोश बन गए,
पता ही ना चला...
थोड़ी नादानी वोह शैतानी बचपनकी,
जवाबदारियों ने कब सब भुला दिया,
पता ही ना चला....
मम्मी की मुंह से निकलने वाली डांट,
कब बॉस के मुंह से सुनाई देने लगी ,
पता ही ना चला....
दोस्त साथ थे तब वक़्त कौन देखता था,
आज उंसेही मिले कितना वक़्त हो गया,
पता ही ना चला....
रोज ९ बजे मम्मी सुला दिया करती थी,
अब तो ऑफिस में ही ११ कब बज गए,
पता ही ना चला....
हसना चाहता हूं, रोना चाहता हूं फिर से,
हालात ने कब समझोता करवा लिया इंसे,
पता ही ना चला....
बैठा था अकेला तो थोड़ा सोचकर देखा,
यादों से लिपटकर आंखे कब रोने लगी,
पता ही ना चला...
पोंछ लिए आंसू मेरे हाथोने जैसे मा बनकर,
यूं ही सोचते सोचते फिर कब आंख लग गई,
पता ही ना चला....
अच्छा खासा जी रहा था बचपन !
बड़ा क्यों हो गया पता ही ना चला ?
मिलन लाड. वलसाड.