बालदिवस
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क्यों दिन के मोहताज बने,
बाकी दिन को भूल गए क्या
सिर्फ आज बच्चों को याद करें।
वो सूनी आँखें क्या रोज ही
आशाओ से भर जाती हैं
उनकी बेबसी फिर क्यूँ
आज ही नजर आती हैं।
भुख गरीबी से लड़ता बचपन
गिरता लड़खड़ाता बचपन
आज के समारोह की क्यूँ
ये फिर भेंट चढ जाता है।
शिक्षा का अधिकार नही
माँ पिता का दुलार नही
क्यूँ इनके हिस्से में फिर
आता सारा प्यार नहीं।
इतना मुश्किल है क्या
दिल से फरेब हटाना
क्या जरूरी नहीं है हमको
एक अनाथ को अपनाना।
पेट भर भोजन नहीं
तन पर कपड़े नहीं
रोटी पानी की चिंता
और कोई लफड़ा नहीं।
क्या इतना मुश्किल है
दिल को अपने समझाना
इन बच्चों को दे सुरक्षा
हर दुख से बाहर लाना।
थोड़ा सोचो महसूस करो
छल कपट रख एक तरफ
हर बच्चे को मिले सुरक्षा
ऐसा एक संकल्प करो ।
दिव्या राकेश शर्मा