पुष्प जो अंकुरित होने के,
पूर्व ही तोड़ दिया जाता है,
लगा झटका क्षीण दशा के वृक्ष को,
मेरे सोच के परे है,दोष क्या था उसका।
मुल्य का क्या था उसकी आशाओं का,
आशाओ को पूर्व ही मिला था मिट्टी में,
मातृ सुख तो परे हैं सुना है उद्यान तेरा,
मेरे सोच के परे हैं,दोष क्या था उसका।
उद्यानो की शोभा क्या फल ही बढाते हैं,
हैं सुना मां से फुल बिना फल आते कहां से,
देखी रचना अपनी सच फुल बिना आते फल,
मेरे सोच के परे है,दोष क्या था उसका।
दिनेश गर्ग 'कोलू'