कलम तोड दी मैंने.......
और फिर कलम तोड दी मैंने ,
एक गजल अधूरी छोड दी मैंने ,
मंजिल आँखो के सामने थी ,
पर अपनी कश्ति मोड दी मैंने ,
उसने कहा ये मुमकिन नहीं
मैं तुम्हारे हाथो की लकीरो में नहीं ,
तुम अच्छे दोस्त हो मेरे .....
और फिर अपनी सारी अच्छाइयाँ छोड दी मैंने ,
और फिर एक -2 करके आला- 2 बुराईयाँ जोड ली मैंने ,
और फिर खुदको इतना बेजार किया मैने ,
अपना बहुत नुकसान किया मैंने,
देह का तो क्या ही बयाँ करूँ
दिल को भी बहुत दर्द दिया मैंने ,
फिर एक दिन खुद से ये सवाल किया मैंने ,
कि जीने की ख्वाहिस क्यो छोड़ दी मैंने ,
वो बनना सँवरना वो हँसना हँसाना ,
वो लड़ना झगड़ना रूढना मनाना ,
वो दोस्तो में किस्से कहानी सुनाना ,
आधा सच बताना आधा अपना मिलाना,
वो यारो के बीच हँसी ठहाके लगाना ,
वो सब पर अपनी खुशियाँ लुटाना ,
वो माँ को सताना उसे अपने पीछे घुमाना ,
उसे सारे दिन का हाल खुलकर बताना ,
ये सारी हरकते एक झटके में छोड दी मैंने ,
अपनी जिन्दगी में एक गहरी खामोशी जोड ली ,
हाँ.....कलम तोड दी मैंने।