मैं और मेरे अह्सास
ये उड़ती जुल्फ़ें
ये लहराता दुपट्टा ये उड़ती जुल्फ़ें होश
उड़ाती हैं l
खुली फिझाओ में प्यार के हिचकोले में
झुलाती हैं ll
ख्वाबों से बाहिर निकालने के लिए
ढँढोलकर l
गहरी नींद में सोई हुई जवानी को वो
उठाती हैं ll
"सखी"
दर्शिता बाबूभाई शाह