मुझे ‘मैं’ पसंद हूँ ।
यह बिंदी ना लगाया करो ,
यह तुम पर जँचती नहीं ।
गहरे रंग ही पहना करो ,
यह साड़ी तुम पर फबती नहीं ॥
तो सुनो ...
यह बिंदी मैंने लगाई है ,
तो मुझे तो जँचती ही होगी।
यह साड़ी भी मैंने ही खरीदी है,
पहनी है तो मुझे पसंद ही होगी ॥
तुम्हें लाल रंग पसंद है तो ,
पीला रंग खराब है क्या ?
तुम शौक़ीन हो ‘अंग्रेज़ी’ में बड़बड़ाने के,
तो ‘हिंदी’ मेरी बेमिसाल नहीं है क्या ?
इतना तो तुम्हें भी पता ही होगा कि ,
नहीं मिलते दो लोगों के उंगलियों के भी निशान ।
फिर कैसे हो सकती है ?
सभी की पसंद नापसंद एक समान । ।
मेरे शौक को ,मेरे पहनावे को,
मेरे खाने को , मेरे गाने को ,
यूँ बेवजह जज ना तुम किया करो ।
खुद में भी मस्त रहना सीखो ,
हरदम दूसरों में नुक्स निकालने का कष्ट ना तुम किया करो ॥
क्या पता ...
तुम्हारी कोई पसंद भी ,
करोड़ों में से हर एक को रास नहीं हो। ।
तो क्या ?
आज तक जो तुम खुद को ‘ख़ूब’ समझते आए हो ,
मतलब,
तुम भी कुछ खास नहीं हो।
उषा जरवाल ‘एक उन्मुक्त पंछी’