"मेरे वीर, मेरे भैया"
तू जब साथ होता है, डर भी दूर भागता है,
तेरे होने से ही तो ये मन निडर जागता है।
हर राखी पर सिर्फ़ धागा नहीं बाँधती मैं,
एक दुआ, एक भरोसा — तेरे नाम कर देती हूँ मैं।
बचपन में तेरी ऊँगली पकड़ चलना सीखा,
खिलौनों से ज्यादा, तेरा साथ अच्छा लगा।
तूने गिरने से पहले ही सम्भाल लिया,
हर आँसू से पहले मेरा चेहरा पढ़ लिया।
भैया, तूने तो अपने सपनों को पीछे छोड़ दिया,
मुझ पर कभी कोई आँच न आए, इसीलिए सब कुछ छोड़ दिया।
तेरे कंधों पर मेरी हर ख़ुशी का बोझ था,
और तू हँसते-हँसते सब सहता चला गया।
कभी डाँटा, कभी समझाया, कभी चुपचाप सब सहा,
पर तेरी बहन को किसी चीज़ की कमी नहीं होने दी — यह सच है, भैया।
आज भी जब मैं थक जाती हूँ या टूटी सी लगती हूँ,
तो सबसे पहले तेरा ही नाम जुबां पर आता है — "भैया..."
राखी के धागे से कहीं ज्यादा गहरा है ये रिश्ता,
तू मेरा गर्व है, तू मेरा सच्चा साथी, तू है मेरा फरिश्ता।