ग़ज़लः “जो है वही बस नज़र आता है“
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न हर एक साया यहाँ इकसा नजर आता है,
जो देखता हूँ वही दर्दमंद ए सबर आता है।
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शीशा ए वजूद मेरा मिटा है जहाँ चूर चूर से,
मिस्ल ए आह से रौशन कोई असर आता है।
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दुआ भी करता नहीं अब दिलों का यदा कदा,
नफ़स की चालों से चश्म, बस ख़बर आता है।
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मैं क्या हूँ, कौन हूँ, किस टसर में छुपा के लुफत,
फिरदोस हर आईने में वही अगर मगर आता है।
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बरू कर्द फ़क़त ख़मोशी में मिलती है मंज़िल मुझे,
रूबाब न साँसें हों, वो ही बाब ए असर आता है।
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दामन ए यार मिटे हैं नाम, मिटे हैं निशाँ सब मगर,
बहुत अजीब, जो रह गया, वो ही दरअसर आता है।
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खाक गुज़र गया अश्क, मैं मोड़ भी लचर आता है
बाचश्म ए इनाया से भी कम जहाँ नज़र आता है।
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"The wise see no distinction between 'this' and 'that,' for in the light of Brahman, all duality dissolves."
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Jugal Kishore Sharma Bikaner
Saturday, May 10, 2025