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योग क्षेम से मुक्त जो.वह है ईश्वर भक्त। षट विकार से दूर जो.वह प्रभु में अनुरक्त।। दोहा--116
(नैश के दोहे से उद्धृत)
------गणेश तिवारी 'नैश'
मनुष्य में केवल दो प्रकार की ही चिन्ता होती है।
योग-धन जोड़ने की चिन्ता।
क्षेम--कमाए गए धन के चले जाने की चिन्ता ।
षट विकार- काम. क्रोध. लोभ. मोह. मद. मात्सर्य।
ये षटविकार भी अजीब हैं। मनुष्य में काम(इच्छा) होना स्वाभाविक है। जिस मनुष्य की कामनाएँ समाप्त हो जाती हैं. उसका कहना ही क्या ? वह मुक्त हो जाता है। वह ईश्वर को प्राप्त कर लेता है। ज्ञानी. ध्यानी. साधू. सन्यासी. जिनकी इच्छाएँ समाप्त हो जाती हैं--उनमें.लाभ-हानि. जीवन-मरण. यश- अपयश आदि द्वन्द्व समाप्त हो जाते हैं।
मनुष्य की जब इच्छा नहीं पूरी होती है. तब क्रोध होता है.और जब पूरी हो जाती है तो लोभ हो जाता है. लोभ बढ़ता है तो मोह पैदा होता है.मोह से मद(अहंकार) हो जाता है और अहंकार से ईर्ष्या (डाह) पैदा होती है।
इसे यों भी समझ सकते हैं--धन प्राप्त करने की इच्छा हुयी--धन नहीं मिला तो क्रोध पैदा होता है. अपने पर. उन पर जिनके कारण धन नहीं मिला। यदि धन मिल गया तो धन से लोभ हो जाता है। उसकी इच्छा थी कि लखपति बन जाऊँ. धन से लोभ बढ़ा तो वह करोड़पति बनने की इच्छा करने लगा. करोड़पति से अरबपति--
लोभ है जो कभी समाप्त नहीं होता।
धीरे-धीरे उसमें अपने धन से राग (मोह) पैदा हो जाता है और फिर उसे अपने धन पर अहंकार हो जाता है--यह अहंकार भी क्या चीज़ है.यह मरने के बाद ही जाता है।
वह जीवन भर अपने धन पर कुण्डली मार कर बैठा रहता है-उसे सदैव डर
बना रहता है कि कहीं धन चला न जाए। वह सदैव आगे की ओर (अडानी. अम्बानी की ओर देखकर डाह करता है. और नीचे वालों को देखकर उनसे घृणा करता है। ईश्वर हम सबको योग- क्षेम की चिन्ता से मुक्त करे।