नारी: सृजन और स्नेह की मूर्ति
तू सृजन की भूमि पावन, तू प्रेम की गहरी नदी,
तेरी कोमलता में छुपी है, जग को रचने की विधि।
तेरे आँचल की छाँव में, जीवन मुस्काता पल-पल,
तेरी गहराई में बसता, सृष्टि का मधुर संबल।
तेरे उर में स्पंदन जागे, ममता की मीठी गूँज,
जहाँ से बहती अमृत-धारा, हर संतति को दे अनूभूति।
तेरी काया का हर अंश, प्रेम और शक्ति का रूप,
जहाँ सृजन का गीत गूँजता, वहाँ खिलता जीवन का रूप।
तेरा सम्मान, तेरी गरिमा, इस जग का सबसे बड़ा गहना,
नारी! तू ही इस धरती पर, सृजन की पहली रचना।