जो रात जाग के तुम पर ग़ज़ल लिखा हूँ मैं
बिना पगार के ढोता हुआ गधा हूँ मैं ।
तू दिन को रात कहे दिन भी रात हो जाये
तुम्हारे सोंच से आगे कहाँ गया हूँ मैं।
बताओ बात ये बीवी है फिर भी सिंगल हो
तुम्हारे पोस्ट पे जाकर कहीं पढ़ा हूँ मैं
इसे मैं प्यार करूँ या उसे करूँ नफरत
थी राजनीति की चालें छला गया हूँ मैं
चला गया है जो कहकरके अलविदा मुझको
वो लौट आयेगा ये सोंच के खड़ा हूँ मैं
कहाँ तू ढूढ रहा मुझको रोशनी वाले
तेरे चराग के नीचे कहीं पड़ा हूँ मैं।
मैं चित्रगुप्त हूँ यमराज हैं मेरे मालिक
मगर लिखा है जो उस बात से बंधा हूँ मैं।
#चित्रगुप्त