Working woman होने का गर्व भी!!!!
और मन ने कुंठा भी थी।
परिवार के लिये ही जाती थी,
पर परिवार को ही समय ना दे पाती थी,
सूई की रफ़्तार यूँ ही बढ़ जाती थी,
और भाग-भाग ऑफ़िस आ जाती थी,
Lunch break में डिब्बों की सभा लग जाती थी,
तब बेटे की बहुत याद आती थी,
और सुई का कांटा सात पर आ जाता था,
और मैं भागी भागी घर आ जाती थी,
घर आता देख पिया को मै ख़ुश हो जाया करती थी,..........
समय ने ली अँगड़ाई है,
और बाज़ी मेरे हाथ आई है,
आज तो चाय भी गुनगुनाई है,
गरम रोटियों पे भी smily 😊आई है,
पुलाव भी सभी सब्जियॉ संग खेल आया है,
कौने में रखे लूडो, चेस,केरम, ताश की पत्तियो ने भी हूँकार लगाई है,
देख पुरानी तस्वीरें सखियां, दीदियां भी मुस्काई है,
तेरा शुक्रिया कर, तुझे जाने को कह रही हूँ.
मैने अपने आप को वक़्त दे कर,
मेरे आंगन की बगिया सजाई है।
मेघा....