Quotes by ओम प्रकाश श्रीवास्तव ओम in Bitesapp read free

ओम प्रकाश श्रीवास्तव ओम

ओम प्रकाश श्रीवास्तव ओम

@ytytwoxz5235.mb


मेरी माटी मेरा देश भाव

मेरी माटी मेरा देश भाव,
साथी मेरे तुम पहचानो।
गौरव गाथा अपने भारत की,
जग समझाओ खुद भी जानो।।

भारत प्यारा है देश हमारा,
वृहद शौर्य से इसका नाता।
ज्ञान बुद्धि का बहु भण्डार यहाँ,
इतिहास हमें है बतलाता।
पावन मिट्टी का हर कण कहता,
नीर वीरता सत मुख छानो।
गौरव गाथा अपने भारत की,
जग समझाओ खुद भी जानो।।

भागी हिंद देश की उन्नति का,
हम सबको भी तो है बनना।
बैर भाव तज देश एकता का,
सत्य भाव है निज उर भरना।
शपथ देश की सर्व सुरक्षा की,
सच्चे मन से जनगण ठानो।
गौरव गाथा अपने भारत की,
जग समझाओ खुद भी जानो।।

शांति प्रेम का है हिंद पुजारी,
सारा जग इस सच को जाने।
आतंक विरोधी नीति सख्त है,
रूप हिंद का नव पहचाने।
वीर वीरता की गाथाओं का,
वर्णन हो जन कानो-कानो।
गौरव गाथा अपने भारत की,
जग समझाओ खुद भी जानो।।

ओम प्रकाश श्रीवास्तव ओम

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सत्य उस तीखी दवा के समान होता है जो तुरंत तो कष्ट कारी लगती - Read on Sahityapedia

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पावन सावन मास में - Read on Sahityapedia

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कैसा आया है समय - Read on Sahityapedia

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होली पावन पर्व है

होली पावन पर्व में,बरसें मधुमय रंग।
खेलें कूदें बाल सब,होता है हुडदंग।।

गुझिया पापड़ बन रहे,रंग भरा बाजार।
होली बरसे प्यार अति,भींगे सब संसार।।

जीजा साली खेलते,रिश्तों के सत रंग।
भाभी देवर भी रंगे,बड़े अनोखे ढंग।।

होली जलती जब जगत,मिटते बहुत विकार।
जले बुराई आग में,हर्षित हो संसार।।

होली खेलें श्याम जी,राधा जी के साथ।
हर्षित होकर भक्त सब,जोड़ें प्रभु को हाथ।।

होली खेले ओम भी,प्रेम भाव के संग।
रंगता सबको प्रेम से,ले पुष्पों के रंग।।

कहता सबसे ओम जी,होली पावन पर्व।
सदा मनाओ हर्ष से,कर संस्कृति पर गर्व।।

ओम प्रकाश श्रीवास्तव ओम
कानपुर नगर

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माँ विनती सुन लो

माँ वीणा मम विनती सुन लो,अम्ब विमल-सी मति दो।
भाव प्रबल लेखन हो मेरा,शब्द शिल्प की गति दो।

सार युक्त हो रचना मेरी,प्रेम भाव अर्पण हो।
मिले ज्ञान हर इक पाठक को,सकल जगत दर्पण हो।
छल-बल भावों पर वार करे,भाव सृजन समुचित दो।
भाव प्रबल लेखन हो मेरा,शब्द शिल्प की गति दो।

आज जगत सब माया लोभी,मानवता है भूला।
पाकर माया के कुछ टुकड़े,द्वेष दर्प से फूला।
विनती सुनकर माँ यह मेरी,ज्ञान जगत को अति दो।
भाव प्रबल लेखन हो मेरा,शब्द शिल्प की गति दो।

रूढ़िवादिता फैली जग में,कुल दीपक सुत होता।
होती सुता पराई जग मेंभेद भाव अति होता।
चले कलम इस पर भी मेरी,काव्य सृजन में रति दो।
भाव प्रबल लेखन हो मेरा,शब्द शिल्प की गति दो।

मानव मानव को पहचाने,सत्य प्रेम उर भर दो।
प्रकृति सुरक्षा भाव हृदय में,मम कृति में घर कर दो।
चरण पड़ा है ओम आपके,भाव अहम कर इति दो।
भाव प्रबल लेखन हो मेरा,शब्द शिल्प की गति दो।।

ओम प्रकाश श्रीवास्तव 'ओम'
कानपुर नगर

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जय जय चित्रगुप्त भगवान

चित्रगुप्त जी है नमन,करिये मम कल्याण।
सकल अर्थ विद्या मिले,रक्षित रखिए प्राण।।

चित्रगुप्त सत देव हैं, करते जग का न्याय।
सत्य कर्म जो भी करे,सदगति निश्चित पाय।।

अच्छे करता कर्म जो,पाता श्री से मान।
मिलता उसको स्वर्ग है, पावन यही विधान।।

कायस्थों के देव हैं, चित्र गुप्त महराज।
करते जग का न्याय वह,पहनें पावन ताज।।

पूजन करिये भाव से,लेकर समुचित साज।
हर्षित होंगे चित्र जी,सुफलित होंगे काज।।

चित्रगुप्त के नाम से,डरते दर्पी लोग।
छोड़ें कुटलित कर्म को,चखते सात्विक भोग।।

चित्रगुप्त जी हो कृपा,पाऊँ सात्विक भोग।
प्रेम भाव उर में बसे,मिटे अहम का रोग।।

ओम प्रकाश श्रीवास्तव ओम
कानपुर नगर

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दोहा

माया छिपती है कहाँ, सबसे बड़ा सवाल।
रखती चंचल भाव वह,देती जग को ताल।।

ओमप्रकाश श्रीवास्तव ओम

दोहा
चाय दिवस छाया पड़ा, सकल ग्रुपों में आज।
भौतिकता के दौर में,बने इसी से साज।।@ओम प्रकाश श्रीवास्तव

-ओम प्रकाश श्रीवास्तव ओम

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एक कुण्डली *अतिशय गर्मी है बढ़ी*



अतिशय गर्मी है बढ़ी,लगती धूप प्रचण्ड।
शायद प्रभुवर दे रहे,वन विनाश का दण्ड।
वन विनाश का दण्ड,बहे गर्मी की धारा।
बिलखें सारे जीव,जगत झुलसा है सारा।
पीता पानी खूब,मनुज में गर्मी का भय।
खाकर के तरबूज,तृप्त होताअतिशय।।

ओम प्रकाश श्रीवास्तव ओम
तिलसहरी
कानपुर नगर

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