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suprabhat
--- तो होली होती है यशवन्त कोठारी जब मिलती है नजर से नजर तो यारों होली होती हैं जब मिलते है दिलों से दिल तो यारों होली होती है। जब गुलमोहर से मिलती है फागुनी बयार। तो यारों होली होती है। जब खिलते है अमलताश ओं ’ पलाश तो यारों होली होती है। जब दिलों में जलती है मुहब्बत की आग, तो यारों होली होती है। जब आशिक का प्यार चढ़ता है परवान। तो यारों होली होती है। जब मुड मुड़के देखती है माशूक की नजर। तो यारों होली होती है। जब रंग अबीर से लाल हो अम्बर। तो यारों होली होती है। जब दुल्हन की पायल बजती है। तो यारों होली होती है। जब डफ और चंग बजते हैं। तो यारों होली होती है। जब आम्रमंजरी पर कोयल कूकती है। तो यारों होली होती है। गंगा जब समन्दर से मिलती है तो यारों होली होती है। जब सपनों से सपने मिलते हैं, तो यारों होली होती है। जब अन्धेरों में रंगों का उजास फूटता है तो यारों होली होती है। जब जवानी पंख लगाकर उड़ती है तो यारों होली होती है। जब फागुन दरवाजे पर दस्तक देता है तो यारों होली होती है। जब जातिवाद और साम्रदायिकता जलती है। तो यारों होली होती है। जब प्रकृति पुरूष से मिलती है। तो यारों होली होती है। जब कामदेव और रति मिलते हैं तो यारों होली होती है। जब कामिनियां-दामिनयां निरखती है। तो यारों होली होती है। जब राधा-कृष्ण बनती है और कृष्ण राधा बनते है तो यारों होली होती है। 0 0 यशवन्त कोठारी 86, लक्ष्मी नगर, ब्रह्मपुरी बाहर, जयपुर-302002 फोनः9414461207
होली पर होली के रंगों की चर्चा करना स्वाभाविक भी है और आवश्यक भी। अक्सर लोग-बाग सोचते हैं कि होली का एक ही रंग है क्योंकि जिये सो खेले फाग। मगर जनाब होली के रंग हजार हो सकते हैं, बस देखने वाले की नजर होनी चाहिए या फिर नजर के चश्मे सही होने चाहिए। गांव की होली अलग, तो शहरों की होली अलग तो महानगरों की होली अलग। एक होली गीली तो एक होली सूखी। एक होली लठ्ठमार तो एक होली कोड़ामार। बरसाने की होली का अलग संसार तो कृष्ण की होली और राधा का अलग मजा। अफसरों की होली अलग तो चपरासियों की होली अलग। कोई चुटकी भर गुलाल को आदर और अदब के साथ लगाकर होली मना लेता हैं तो कोई रंग में सराबोर हो कर होली मनाता है।
कभी रासलीला, कृप्णलीला और रामलीलाए होती थी, मगर समय बदला और पिछले दिनों शानदार, मालदार, चमकदार लिटफेस्टलीला देखने को मिली।टी वी ने इस लीला में चुम्बन दिखाये। अखबारों ने इस लीला में जाम छलकते दिखाये। गान्धीवादी राज्य सरकार ने गान्धीजी की पुण्यतिथि से कुछ दिनों पूर्व हुई इस लीला में शराब की नदी बहाने के लिए तीस लाख रुपये दिये। तन-मन-धन से पूरी सरकार इस लीला में मगरुर हो कर छा गई, ये बात अलग है कि सरकारी अकादमियों में लेखक-कलाकार मामूली पारिश्रमिक- पुरस्कार सहयोग राशि के लिए भी तड़प रहे है। आनन्द ही आनन्द ! कौन कहता है राजस्थान, पिछड़ा प्रदेश है, बीमारु राज्य है रेडलाइट से लेकर रेडवाइन, वोदका, व्हिस्की, बीयर, पानी की तरह बह रही है। गीतो के घाट पर शराब की नदिया बही,कुछ ने केवल आचमन किया। कुछ ने खूब पी और मटके भरकर घर पर भी ले गये। कौन जानता है कि इस कार्यक्रम के असली प्रायोजको के तार कामन वेल्थ गेम्स तक जूडे हुए है। हिन्दी राजस्थानी के नाम से कुछ लेखक बुलाये गये। एक भूतपूर्व कवि-नौकरशाह अपने ठसके से हर जगह पहुच जाते है। हास्यस्पद रस के एक कवि ने एक नेता की कविताओं का ऐसा अनुवाद सुनाया कि कविता शरमा गई।
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आरोग्य के देवता भगवान धन्वंतरि यशवन्त कोठारी दीपावली से दो दिन पूर्व के दिन को हम सभी धन तेरस के रूप में मनाते हैं । इसी दिन आरोग्य, स्वास्थ्य के देवता भगवान धन्वंतरि का भी जन्म हुआ था । भगवान धन्वंतरि आयुर्वेद शास्त्र के प्रणेता भी थे । आयुर्वेद जीवन विज्ञान है धन्वंतरि त्रयोदशी को स्वास्थ्य दिवस के रूप में भी मनाया जाता है । वैसे भी स्वास्थ्य धन सब धनों से श्रेष्ठ है, अस्वस्थ जीवन तो मृत्यु से भी बदतर है । आइये, स्वास्थ्य - लक्ष्मी की पूजा करें । श्रीमद्भागवत के अनुसार धन्वंतरि का जन्म पुरुरवा के वंश में हुआ था । यही चंद्रवंश था । हरिवंश पुराण के अनुसार धन्वंतरि का आविर्भाव समुद्र मंथन से हुआ । पौराणिक मान्यताओं के अनुसार धन्वंतरि भगवान विष्णु के अवतार थे । वे अमृत-कलश लेकर अवतीर्ण हुए थे । कथा के अनुसार देवों और दानवों ने मिलकर समुद्र मंथन किया । इस समुद्र मंथन से चंद्रमा, लक्ष्मी, सुरा, उच्चैश्रवा (घोड़ा), ऐरावत (हाथी), कौस्तुभ मणि, कामधेनु, कल्पवृक्ष, अप्सराएं और विष सबसे पहले निकला जिसे दानवों ने लेने से इंकार कर दिया लेकिन समुद्र लक्ष्मी और अमृत पर अपना अधिकार जमाने के लिए असुरों ने देवताओं पर आक्रमण कर दिया । इधर धन्वंतरि ने देवताओं को अमृत देकर अमर कर दिया । सुश्रुत संहिता मंे भी धन्वंतरि को अमृत का जनक बताया गया है । अमृत बनाने की कला कालांतर में केवल धन्वंतरि के पास रह गयी । वास्तव में भगवान धन्वंतरि ने ही आगे चलकर आरोग्य, स्वास्थ्य और वायु के वेद ‘आयुर्वेद’ को बनाया ताकि पूरी मानव जाति निरोग रह सके और स्वास्थ्य से भरपूर जीवन जी सके । धन्वंतरि केवल मानव चिकित्सा विज्ञान के ज्ञाता ही नही थे, वरन् अन्य विषयों के भी ज्ञाता थे । उन्होंने घोड़ों के लिए शालिहोत्र शास्त्र, पेड़-पौधों के लिए वृक्षायुर्वेद तथा हाथियों के लिए पालकाप्य शास्त्र, पक्षियों के लिए शकुनि विज्ञान आदि शास्त्रों का प्रणयन किया । एक अन्य मान्यता के अनुसार धनवंतरि का कार्य क्षेत्र काशी रहा । उन्हें कई ग्रंथों में काशीराज भी कहा गया है । चूँकि धन्वंतरि को विष्णु का अवतार माना गया है, इसलिए लक्ष्मी उनकी सहज अनुगामिनी रही । धन्वंतरि वीर, विद्वान तथा प्राणाचार्य चिकित्सक थे । आयुर्वेद की वैज्ञानिक प्राण प्रतिष्ठा करने में भगवान धन्वंतरि का योगदान अभूतपूर्व है । धन्वंतरि रचित ‘धन्वंतरि संहिता’ अब अप्राप्य है । मगर संपूर्ण आयुर्वेद वाड.ग्मय इसी संहिता पर आधारित है । धन्वंतरि के अनुसार मृत्यु 101 प्रकार की है इनमें से एक केवल एक मृत्यु ही काल मृत्यु है, बाकी सब अकाल मृत्यु हैं । इन अकाल मृत्युओं का रोकने का प्रयास ही चिकित्सा है । धन्वंतरि के अनुसार परमार्थ के लिए आयुर्वेद से बढ़कर अन्य कोई साधन नही है ।
तिजोरी पर चर्चा यशवंत कोठारी दीपावली के अवसर पर सभी चर्चाएं बिना तिजोरी की चर्चा के अधूरी है तथा धन के देवता कुबेर ने भी धन को तिजोरी में ही रखा होगा। सरकारी खजाना हो या व्यक्तिगत धन तिजोरी में ही रखा जाता है तथा रखा जाना चाहिए। पुराने समय में भी धन को लोहे या लकड़ी की तिजोरी में ही रखा जाता या घर के अन्दर तहखाने में या एक विशेप कमरे में एक लोहे या लकड़ी की मजबूत पेटी रखी रहती है, जिसमे नकदी, सोना, चांदी तथा अन्य मूल्यवान वस्तुओं को सुरक्षित रखा जाता है। इसी प्रकार व्यावसायिक प्रतिप्ठानों, दुकानों आदि में धन को तिजोरी या गल्ले में रखने की परम्परा है। तिजोरी मजबूत लोहे की बनी होती है, गुल्लक या गल्ला लकड़ी या चदर की बनी पेटी होती है। आजकल लोहे की अलमारियों में ही एक खण्ड को तिजोरी का रुप दिया जाता है। व्यापारिक वर्ग इसी गल्लेया तिजोरी पर गणेश तथा लक्ष्मी के चित्र बनाकर पूजा करते है।
दीपावली क्या आई। छोटे बड़े सभी व्यस्त हो गये। आजकल एक नई संस्कृति का विकास हो रहा है, जिसके अन्तर्गत दिवाली पर महंगे उपहारों का लेन देन हो रहा है। उपहार-संस्कृति का विकास अपनी आर्थिक हैसियत के आधार पर तय हो रहा है। गरीब को कोई उपहार नहीं देता मगर जिसके पास पहले से ही काफी है उसी के पास उपहारों का जखीरा जा रहा है, गरीब बच्चों को आतिशबाजी के लिए कोई पटाखे नहीं देता, मगर सम्पन्न वर्ग एक दूसरे को उपहारों से लाद देते हैं, क्योकि वे काम के आदमी हैं। बड़े आदमी हैं, उनको उपहार देने से आज नही ंतो कल फायदा पहुंचेगा। कुछ न कुछ लाभ अवश्य मिलेगा। गये वे दिन जब उपहारों के साथ भावनाएं, संवेदनाएं जुड़ी होती थी, लोग एक दूसरे को उपहार देकर खुश होते थे। अब उपहार विनिमय चाहता है, मैंने मिठाई दी, तुम भी मिठाई दो या प्रमोशन दो या आर्थिक लाभ दो। नहीं दे सकते तो फिर तुम्हें उपहार देने का फायदा क्या ? और चूंकि अधिकांश गरीब, बेसहारा लोग कुछ नहीं दे सकते उन्हें कोई उपहार भी नहीं देता। मिठाई, मेवे के पैकेटस,सूटलेन्थ, मंहगे पैन, कलेण्डर, डायरियां, घड़ियां, जूते, आभूपण और नकदी तक। एक किलो मिठाई के डिब्बे मे दस हजार का गिफ्ट चैक रख कर दे आइये, कैसे नहीं होगाआपका प्रमोशन या साली का स्थानान्तरण या बैंक से ऋण। यह कैसी संस्कृति का विकास हो रहा है। हमने एक सीधी सादी सांस्कृतिक परम्परा के खोल में रिश्वत, कमीशन का नया काम शुरु कर दिया है।
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