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*दीप उजालो* दे रहा है आज दस्तक, खुशियों का त्योहार आला । प्रीत का उत्सव मना लो, दीप उजालो - दीप उजालो।। (१) धरा दुल्हन सी सजी है। दूर शहनाई बजी है । आसमां खुश हो रहा है। धैर्य अपना खो रहा है । नया कोई गीत गा लो ।।.... दीप उजालो - दीप उजालो।। (२) सुमन देखो हंस रहे हैं । धागे में गुंथ फंस रहे हैं । सुई ह्रदय के पार जाती । किंतु एक आवाज आती । द्वार अपने तुम सजा लो ।।.... दीप उजालो - दीप उजालो।। (३) शोर चारों ओर विहंगम। बाजार की छटा अनुपम । कहीं पुताई के नजारे, और रंगों पर इशारे । घर का हर कोना रंगा लो।।.... दीप उजालो - दीप उजालो।। (४) खील - गट्टे और खिलौने । आज सब के भाव पौने । लडडू, बरफी, रस मलाई । बहार पकवानों की आई । मीत, आओ कुछ तो खालो।।.... दीप उजालो - दीप उजालो।। प्रीत का उत्सव मना लो।।...... मित्रो, रचना बिना काँट-छाँट किये अपने मूल स्वरूप कवि नाम सहित अग्रेषित करें। धन्यवाद। *कवि विनोद सिंह गुर्जर* चलभाष :- ९९७७११०५६१
?????? चप्पल ले लो, जूते ले लो रंग-बिरंगे जी। फूलों जैसे पैर रहेंगे, हरदम चंगे जी।।.... .? (१) एक तुम्हारी सेवा में ये, सदा रहें तैयार। हंसकर जख्म हजारों सहते, इनका सच्चा प्यार।। गुस्सा हो, सिर चढ़ कर बोलें, हो जायें दंगे जी।।... फूलों जैसे पैर रहेंगे, हरदम चंगे जी।।.... .? (२) काँटो के पथ इसने रोंदे। एवरेस्ट चढ़ घूमा। सागर तल गहराई देखी, नभ का दामन चूमा।। इसके अतुलित बल के आगे, सब बे-ढंगे जी ।।.... फूलों जैसे पैर रहेंगे, हरदम चंगे जी।।.... ? (३) चरण खड़ाऊँ सिर पर लेकर, भरत अयोध्या आये। चौदह वर्षों तक सिंहासन के, सुख अदभुत पाये।। महिमा इनकी देव कहें, सनकादिक संगे जी ।।..... फूलों जैसे पैर रहेंगे, हरदम चंगे जी ।।.....? (४) डाकिन, साकिन,भूत -परीते, मारे और भगाये। चाटुकार, निंदक जन मित्रो, कभी, पास ना आये।। चांद सलामत कहे ना लो, गुर्जर से पंगे जी ।।... फूलों जैसे पैर रहेंगे, हरदम चंगे जी ।।.....? .?????? मित्रो, रचना बिना काँट-छाँट किये अपने मूल स्वरूप कवि नाम सहित अग्रेषित करें। धन्यवाद। *कवि विनोद सिंह गुर्जर* चलभाष :- ९९७७११०५६१.
# काव्योत्सव ********* चलो उठो, तारे तोड़ों। थककर क्यूं तुम बैठ गये हो, सागर के धारे मोड़ो।। (१) तुम निर्बल होकर मत बैठो, अतुल तुम्हारा बल है। बीते पल की चिंता छोड़ो, सामने स्वर्णिम कल है।। पूरब-पश्चिम,उत्तर-दक्षिण, वंदन द्वार सजायें। पथ रोशन तेरा करने को, किरणें दौड़ी आयें।। - २ खुशियों से नाता जोड़ो ।।... चलो उठो...।। (२) मरूथल या उत्तुंग शिखर, साहस ना अपना खोना। आँखों में चिर नूतन सपने, प्रतिदिन लेकर सोना।। स्वप्न हकीकत हों उनके, जो श्रम से ना घबड़ाते। मुश्किल कितनी भी आयें, जा तूफॉं से टकराते।। - २ चलो निराशा अब छोड़ो।।...चलो उठो...।। (३) जिसने मन में ठान लिया, मंजिल उसने ही पाई। जो भयभीत हुये उनको, गढ्ढे भी दिखते खाई।। जिनके इरादे फौलादी थे, सारे सागर लॉघे। एवरेस्ट की चोटी चढ़, गौरव के झंडे बाँधे।। - २ समय के संग-संग में दोड़ो ।।...चलो उठो...।। मित्रो सादर नमन । मेरा यह गीत अतिशयोक्ती अलंकृत, संबल एवं ऊर्जा का संचार करने वाला है मानव जीवन आशा- निराशाओं भरा है हमें हिम्मत नहीं हारनी चाहिये इसी को माध्यम बनाकर गीत लिखा है सार्थकता आपके चुनाव पर है । कृपया बिना काँट-छाँट किये आगे भेजें । *कवि विनोद सिंह गुर्जर*
#काव्योत्सव ..... प्रेम की गली में ये उदारता है क्यों ? बार-बार दिल तुझे पुकारता है क्यों ? (१) तू नहीं तो तेरा एहसास है मुझे, ऐसा लगे जैसे आस-पास है मुझे।-२ तेरे-मेरे चित्र नयन, उतारता है क्यों ? बार-बार दिल तुझे पुकारता है क्यों ? (२) सच मानिए जब से आप मिल गए। मन मधुबन में कई पुष्प खिल गए।-२ अंग-अंग दीप अब उजारता है क्यों ? बार-बार दिल तुझे पुकारता है क्यों ? (३) मीरा श्याम रंग में दीवानी हो गई। भक्ति अनुराग की कहानी हो गई।-२ गरल में सुधा, नेह उतारता है क्यों ? बार-बार दिल तुझे पुकारता है क्यों ? (४) राधा व्याकुल हुई घनश्याम आ गए। शबरी के जूठे बेर राम खा गए । -२ ईश्वर भी प्रेम बस हारता है क्यों ? बार-बार दिल तुझे पुकारता है क्योँ ? मित्रो, रचना बिना काँट-छाँट किये अपने मूल स्वरूप कवि नाम सहित अग्रेषित करें। धन्यवाद। *कवि विनोद सिंह गुर्जर* चलभाष :- ९९७७११०५६१.
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