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Udayvir Singh

Udayvir Singh

@udayvir4gmailcom
(6)

॥ मेरी कोशिश ॥

अगर है जिद है ज़िंदगी को मेरे आँसू बहाने की ।
कसम हमने भी खाई है नमी में मुस्कराने की ॥

तनिक हालात उल्टे हैं तो क्या हम टूट जाएंगे ।
कला हमने भी सीखी है रुदन में गीत गाने की ॥

तुझे लेने हो जितने भी ज़िंदगी इम्तहां ले ले ।
जीत अपनी ही होनी है हार ज़ालिम जमाने की ॥

चुराले फूल खुशियों के बिछादे दर्द राहों में ।
हमें आदत पुरानी है तल्ख कांटो पै जाने की ॥

जला कर खाक कर बेशक मेरे ख्वावों की महफिल को ।
मेरी कोशिश ‘उदय’ होगी वहीं दीपक जलाने की ॥

- उदय

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॥ कतरा – कतरा ॥

कतरा - कतरा जोड़ - जोड़ कर,
हमने अपना नीड़ बनाया ।
कुछ खुशियाँ कुछ ग़म की सरगम,
फिर जीवन संगीत सजाया ॥

अपने, गैर मिले हैं जो भी
सबको हँसकर गले लगाया ।
जहाँ उठीं नफरत की आँधीं
वहीं प्रेम का दीप जलाया ॥

- उदय

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॥ नारी ॥

माँ हूँ मैं, ममता है मेरे अंदर
मैं ममत्व से भरी हुई हूँ ।
दया धर्म करुणामय आभूषण से
मैं अनादि से सजी हुई हूँ ।
लोक - लाज संस्कृति का दामन थामे
कर्म राह पर डटी हुई हूँ ।
अबला नहीं, सदा से हूँ मैं सबला,
बस मर्यादा मैं बंधी हुई हूँ ।

- उदय

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#kavyotsav2
विषय: प्रेम / श्रृंगार

|| मुक्तक ||

[1]
बिठाकर सामने उनको ग़ज़ल जब भी लिखेंगे हम ।
डूबकर प्रेम सागर में शब्द मोती चुनेंगे हम ।।
कलम होगी दिवानी सी, मिलें जब-जब नजर उनसे ,
कभी वो हीर सी होंगी कभी राँझा दिखेंगे हम ।।

[2]
किसे फुरसत है जमाने में प्रेम सरिता बहाने की।
सबको जल्दी है सिर्फ अपना ज़लवा दिखाने की॥
फिर भी वक्त से चंद लमहे चुराए हैं सिर्फ आपके लिए ,
क्योंकि हमें तो आदत है रूठों को मनाने की ।।

[3]
ये ज़ालिम दिल लगी कैसी सनम बिन रह नहीं सकते।
ये कैसा दर्द मीठा सा जिसे हम सह नहीं सकते ॥
झुकी नजरों की भाषा को जमाना क्यों नहीं समझे ,
मुहब्बत चीज ऐसी है लफ़्ज में कह नहीं सकते ॥

[4]
कभी मिलकर कहीं हमसे जरा नजरें झुका लो तुम ।
दबा कर होठ दांतो से जरा सा मुस्करा दो तुम ।।
कसम खाकर जमाने की लुटा दें हर खुशी हँसकर ,
मेरे कांधे ऐ रख के सर जरा सा गुनगुना दो तुम ।।

[5]
मेरी हर बात में ज़ालिम तुझे साजिश नजर आए ।
मैं हंसकर भी अगर बोलूं तुझे गाली सी चुभ जाए ॥
तू कितना भी तल्ख हो ले, सहेंगे लाख ज़िल्लत भी ,
मगर कोशिश यही है बस...तेरी आदत बदल जाए॥

[6]
इस ओर मुहब्बत है उस ओर जमाना है ।
दोनों ही तो रूठे हैं दोनों को मनाना है ॥
उल्फ़त की ये राहें भी, तलवार दुधारी सी ।
खुद को भी बचाना है उनको भी बचाना है ॥

- उदय

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#kavyotsav2
विषय : भावनाप्रधान कविता

[ इन पंक्तियों में कविता को एक नवयुवती / स्त्री के रूप में माना गया है और काव्य के विभिन्न संप्रदायों अथवा आवश्यक तत्वों यथा; रस, छंद, अलंकार, वक्रोक्ति, ध्वनि, औचित्य, रीति, गुण आदि को कविता के विभिन्न अंगो-उपांगो के के सौन्दर्य वर्धक आभूषणों की संज्ञा देते हुए कविता की संपूर्णता की कल्पना की गयी है। ]

|| कविता कामिनी ||

साड़ी है भाव वसन की,
शब्दों के जड़े सितारे ।
तन अर्थ गंध से महका,
भाषा नव रूप सँवारे ।१।

गहने सब अलंकार है,
छंदोमय अंगिया बंधन ।
अति वक्र नयन कजरारे,
ले वक्र उक्ति का अंजन ।२।

ध्वनि रमी लक्षणा अभिधा,
पायल की मृदु झन-झन में ।
सुंदर सरगम सी सरके,
चंचल चूड़ी खन-खन में ।३।

हर तरह रीति प्रण पाले,
नख-शिख औचित्य निभाए ।
गुण ओज प्रसाद निरंतर,
माधुर्य छलकता जाए ।४।

सिर पर नव रस की गगरी,
चलती है संभल- संभल के ।
है अरुण अधर में कंपन,
गाती कुछ हलके-हलके ।५।

शरमाती नयन झुकाए,
आई वो हृदय सदन में ।
कवि मानस बोल उठा यूँ,
तुम कौन कामिनीपन में ।६।

थोड़ा घूँघट सरकाया,
उन्नत कर सूरत भोली ।
पहले निज योवन निरखा,
फिर मंद-मंद यूं बोली ।७।

कविता हूँ कवि महबूबा,
कवि प्राणेश्वर है मेरे ।
आई हूँ आज सँवर के,
उनके संग लेने फेरे ।८।

- उदयवीर
सर्वाधिकार सुरक्षित

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#kavyotsav2
विषय : प्रेम / भावनाप्रधान

॥ हम चले अकेले ही थे..॥

हम चले अकेले ही थे
अंजान अंधेरी राहें।
कोइ मिला अचानक अपना,
दोनों बाँहें फैलाए।।

सामीप्य सहज पाते ही
चमके दो युगल परस्पर।
छँट गए घनेरे बादल
रवि लगा झाँकने हँसकर।।

ग़म गया बीत पतझड़ सा
ख़ुशियों की कलियाँ चटकीं।
फिर हवा बसंती आई
शाख़ों से लताएँ लिपटीं।।

हर ओर बिखरती ख़ुशबू
हँसती थी दसों दिशाएँ।
थे नभ से सुमन बरसते
मनहारी मस्त फ़िज़ाएँ ।।

गाते थे पंछी भँवरे
कुछ मधुर-मधुर से स्वर में।
शायद वो प्रेमगीत थे
जीवन के प्रथम प्रहर में।।

जीवंत उठी आशाएँ
स्वप्नों के पंख लगे थे।
उम्मीदों के सागर तट
रेतों के महल बने थे।।

क्या पता एक दिन कोई
क़ातिल सी लहर उठेगी।
अरमानों की बस्ती में
मुश्किल ही साँस बचेगी।।

अपने, अपने, अपने हाँ
अपने ही क्या सोचेंगे।
जिन पर अभिमान हमें था
वो ही रस्ता रोकेंगे।।

चाहा क्या हमने पाया
जीवन के अथक सफ़र में।
मन मीत मिले थे लेकिन
संग चल ना सके भँवर में।।

जिस जगह चले थे कल हम
आए हैं वहीं लौटकर।
सब लूट लिया अपनों ने
बाकी बस याद छोड़कर।।

- उदय

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#kavyotsav2

विषय : प्रेरणादायक

|| नाम इतिहास में . . . ||

इस जहां में हुए लाखों अगणित मनुज,
जो कि रो-धो के अपनी बसर कर गए।
नाम इतिहास में बस उन्ही का चला,
जो कि दुनियां से हटकर करम कर गए॥

अपने अंदर की क्षमता को जो जान पाए,
तो पत्थर को पानी बना दोगे तुम।
ऐसे फूलों से नाज़ुक हो तुम ना कभी,
एक अद्भुत कहानी बना दोगे तुम॥

जो खुद को न पहचान पाए कभी,
उनके जीवन में दुख के भंवर पड़ गए।
नाम इतिहास में बस उन्ही का चला,
जो कि दुनियां से हटकर करम कर गए॥

ग़र मिले भी विफ़लता तो करना न ग़म,
उस विफ़लता को भी तुम लगा लो गले।
फिर सफलता का होगा वो दूना मज़ा,
लक्ष्य पथरीले पथ पर जो चल कर मिले॥

जो सीखे न खुद पर ही करना यकीं,
वो जीते जी दुनियां से मर कर गए।
नाम इतिहास में बस उन्ही का चला,
जो कि दुनियां से हटकर करम कर गए॥

- उदय

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#kavyotsav2
विषय : भावनाप्रधान

|| मेरे अरमान ||

यूं तो कितने अरमां अक्सर, रोज दफ़न होते रहते हैं।
दर्द किसी को पता चले ना, इसीलिए हंसते रहते हैं॥

कदम- कदम पर कांटे बिखरे, फिर भी चलना जारी है।
दूर बहुत मंजिल है बेशक , पर पूरी तैयारी है ॥
दिल टुकड़ों में बिखरा लेकिन, ठीक है सब..! कहते रहते हैं...
दर्द किसी को पता चले ना, इसीलिए हंसते रहते हैं॥

महफिल अपने लिए हजारों, बार सजाई जाती है ।
फिर भी ये तन्हाई आकर, शोक राग क्यों गाती है ॥
दिन भर अश्क रुके पलकों पर, रातों में बहते रहते हैं...
दर्द किसी को पता चले ना, इसीलिए हंसते रहते हैं॥

जीवन का हर लमहा उलझा, तो क्या दुनियां छोड़ चलें ।
नहीं निभा पाए वो कस्में, तो क्या हम भी वादे तोड़ चलें.?
अपनों का दिल टूट न जाए, पीर कठिन सहते रहते हैं...
दर्द किसी को पता चले ना, इसीलिए हंसते रहते हैं॥

कितने तूफानों ने रौंदा, इस आबाद गुलिस्तां को ।
पर वीराना रोक न पाया, अब तक मेरे रस्ता को ॥
दर्द बयां हो जाए 'उदय़' तो, गीत- ग़ज़ल गाते रहते हैं...
दर्द किसी को पता चले ना, इसीलिए हंसते रहते हैं॥

यूं तो कितने अरमां अक्सर, रोज दफ़न होते रहते हैं।

- उदय

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