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TUHINANSHU MISHRA

TUHINANSHU MISHRA Matrubharti Verified

@tuhinanshumishra151830
(16)

लक्ष्य
© Tuhinanshu Mishra

मस्तक नीचा,
मस्तिष्क तना,
है हरा हृदय का,
घाव घना।

भीतर है भरी,
जीवित ज्वाला,
जिह्वा जैसे,
विष का प्याला।

दस दिशा दिखाये,
एक द्वार,
आत्मा सहती,
असह्य भार।

वह सूर्य लाल,
पर्वत विशाल,
अब लक्ष्य मात्र,
आधार प्राण।

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चेतना

अंधकार में रमा हुआ,
चहुं ओर था धुआं हुआ,
नेत्रों से अश्रु प्रवाह हुआ,
था शीश क्यों झुका हुआ?

मन में भरा तनाव था,
हर कोशिका में घाव था,
जो नेत्र फिर कहीं पड़े,
बस प्राण का अभाव था।

एक क्षण शिला पे बैठकर,
इन चक्षुओं को मूंदकर,
जो ईश का स्मरण किया,
कुछ शांत सा हृदय हुआ।

ये सूर्य का जो तेज था,
या वायु का वो वेग था,
कि भार कुछ हटा लगा,
मस्तिष्क कुछ नया लगा।

मेधा को यह असूझ था,
पर सत्य यह नितांत था,
की सूक्ष्म यह जो भाव था,
यह चित्त का आधार था।

©Tuhinanshu Mishra

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अंधेरे में पहुंच कर चिराग जला लिया,
अंधेरा रूह में था,
भरोसा चिराग पे था।
रौशनी में आए,
चिराग बुझा दिया,
रूह से अंधेरा छंटा नहीं,
चिराग से भी भरोसा उठ गया।

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' मिथ्याभिमान '
ये मेरी स्वरचित कविताओं में से एक है और मुझे स्वयं बेहद पसंद है। इसका अभिप्राय सिर्फ इतना है कि मनुष्य को यदि क्षणिक अभिमान हो तो वह ग्रहण करने योग्य है परंतु यदि सदा गर्व में फूला रह गया तो मूर्ख समान बन जाता है।
मैं अपनी बाकी कविताएं भी जल्द ही वीडियो/लेख के माध्यम से प्रकाशित करूंगा। जुड़े रहें।

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मरुभूमि

रुकता रिसाव,
जल का बहाव,
है क्रूर दृश्य,
सुख का अभाव।

धरती की धूल,
कांटो में फूल,
सूरज का तेज,
तपता त्रिशूल।

गागर में नीर,
दुबला शरीर,
झलकाते नेत्र,
भीतर की पीर।

रात्रि की शीत,
होती प्रतीत,
मानों खुदा,
काला अतीत।

क्या है ये शाप?
या कोई पाप?
जिसको है भोगती,
यह देह कांप।

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A lion, being the greatest predator of jungle, if alone, is threatened by a group of hyenas.
Is there any point in a competition for superiority ?

-TUHINANSHU MISHRA

सिर्फ दिमाग़ के राज़ी होने से कलम नहीं चलती जनाब,
दिल की हामी के लिए एक गमगीन दास्तां चाहिए।

-TUHINANSHU MISHRA