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Shivani Verma

Shivani Verma

@shivaniverma3979
(55)

डायरी में रखा
वो सूखा लाल गुलाब
आज भी 
तुम्हारे मोहब्बत को
बयां कर रहा है
तुम्हारे अहसासों की रवानी
मेरे लहू में तैर रही है
माना कि हम दूर हैं
हालातों से मजबूर हैं
पर तुम्हारे ख्यालों से
मेरे विचार बनते हैं
जिनमें उलझ जाती हूं मैं
फिर से सुलझने के लिए
अक्सर ही गुनगुना लेती हूं
उन हसीन लम्हों को
संग जो गुजारे थे
जो कभी बस हमारे थे
कॉलेज की कैंटीन में
कच्चे गलियारों में
पेड़ों की छांव में
छत की मुंडेर पर....

शिवानी वर्मा
"शांतिनिकेतन"

  

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आपके हुनर की क़दर हर किसी को हो,
जरूरी तो नहीं
ख़ुदा भी ये नज़र हर किसी को अता नहीं करता
-शिवानी वर्मा

                                    वारिस

उदास बैठी पीहू को चंदन पीछे से आकर गोद में ले लेता है और जेब से उसकी पसंद की चॉकलेट निकालकर देता है, पर पीहू फिर भी खुश नहीं होती है। ऑफिस से घर पहुँचते ही चंदन ने महसूस किया कि रोज चहकने वाली उसकी पांच वर्षीय प्यारी नटखट बेटी पीहू, कई दिनों से उदास रहने लगी है और जब-कब भगवान के आगे कुछ बुदबुदाती रहती है।

क्या बात है बेटा...मुझसे नाराज हो क्या??? चंदन पुचकारते हुए उसे घर के आंगन में लेकर चले आये जहाँ उनकी माँ फोन पर और गर्भवती पत्नी घर के कामों में व्यस्त थी।

"पापा ये बालिश क्या होता है???

चंदन बारिश समझकर आसमान की ओर इशारा करते हुए बोले "जब ऊपर आसमान से पानी गिरता है, तो उसे बारिश कहते हैं।"

"नहीं पापा.....बालिश नहीं वालिश!!!

"वारिस....क्यों बेटा आप क्यों पूछ रही ही वारिस के बारे में बेटी के मुँह से इतने वजनदार शब्द सुनकर चंदन का माथा ठनका।

"पापा...दादी कहती हैं कि तुम इस घर की बालिश नहीं हो.... तुम रोज भगवान जी से कहो कि हमारे घर मेरा भाई आ जाए, तो दादी मुझे ज्यादा प्यार करेंगी, इसलिए अब मैं रोज दादी की तरह पूजा करती हूँ।"

पहले भी कई दफ़ा चंदन पत्नी के मुँह से माँ की ऐसी बातें सुन चुका था पर उसने ज्यादा गौर न किया पर आज नन्ही बेटी की बातें उसे चुभ गयीं।

"माँ ये सब क्या है????"

"हाँ तो कुछ गलत थोड़े ही कहा है। ये तो पराई है। पोते का मुँह देख लूं तो जीवन सफल हो जाए।"

चंदन गुस्से से माँ से उलझ पड़ा " बच्चों से कोई ऐसी बातें करता है। पीहू ही मेरी वारिस है। आने वाला बच्चा लड़का हो या लड़की, मेरी हर एक चीज़ पर दोनों का समान अधिकार होगा। आज के बाद पीहू से ऐसी घटिया बातें कोई नहीं करेगा।" कहकर चंदन पीहू को लेकर बाहर निकल गया और माता जी फिर से बहू को बेटा पैदा करने की हिदायत देने लगी।

शिवानी वर्मा
शांतिनिकेतन

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गुस्ताखियां मेरी अब माफ कर दो
मुझसे मुहब्बत का आगाज़ कर दो
तेरी सांसो से दम भर रही हूँ मैं
मेरी मुहब्बत का इंसाफ कर दो

माना ख़ता कुछ हुई हमसे
पर इतनी नही कि अंजान कर दो
रुख़सत कर अपने दिल से मुझे
मेरे इश्क को यूँ न बेजान कर दो

गुस्ताखियां मेरी अब माफ कर दो....

दुआओं में जो उठ जाएं तेरे हाथ
मेरे नाम अपने कुछ अल्फाज़ कर दो
वज़ह दो, सज़ा दो, वफ़ा दो मुझे
बेरुखी से मुझे न यूँ बर्बाद कर दो

गुस्ताखियां मेरी अब माफ कर दो....

सुर्ख है ये आंखे जो गम में तेरे बिन
उन्हें दरिया बनने का पैगाम कर दो
समझ गयी हूं तुझको या समझी नही हूं
मरने या जीने का इंतज़ाम कर दो
गुस्ताखियां मेरी अब माफ कर दो.....


शिवानी वर्मा
शांतिनिकेतन

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ठहर जाती हूं उस वक्त में जब तुम मेरे साथ थे
मोहब्बत तो थी हम दोनो में मगर न कोई संवाद थे

ना कोई इजहार था ना ही इंकार था
गुफ्तगू सनम से करने को मिले न लम्हात थे

दीदार ए सनम को सवार हुई जो कश्ती में
रिवाजों की लहरों में डूबने के हालात थे

मिलने की थी जुस्तजू पर मिल ना पाए कभी
मुलाकातों का जब वक्त आया तो बिछड़ने के हालात थे

ना कभी तुमने कलाई पकड़ी ना मैंने पलकें झपकाईं
प्रेम में थे दोनों मगर सहमे हुए जज्बात थे

शिवानी वर्मा
शांतिनिकेतन

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