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Dev Srivastava Divyam

Dev Srivastava Divyam Matrubharti Verified

@shivamsrivastava140046
(16)

Life is a dream


You were a beautiful dream, where I lost my way,
Oh, my faithless life, I lived for you each day.

My first love was you, my final dream come true,
But you shattered all my hopes, and my heart anew.

You showed me lofty dreams, making strangers of mine,
Those I loved, you separated, leaving me in decline.

I wonder what I did, every dream lies in vain,
Now my imagination's gone, leaving me in pain.

In your love, I was helpless, lost and confined,
For your sake, I lost myself, left behind.

I took your every sorrow as joy and delight,
Your every truth, I denied, in endless fight.

Your colors and forms, so captivating and bright,
I negated myself, lost in your lovely sight.

Leaving all behind, I worshiped only you,
You were a beautiful dream, where I lost my way anew.

Oh, my faithless life, I lived for you each day,
You were a beautiful dream, where I lost my way.

~ Dev Srivastava " Divyam " ✍️

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आखिरी खत


बचपन से मेरा सपना था,
बड़ा होकर मैं बनूं डॉक्टर ।
मदद करूंगा गरीबों की,
ईलाज मुफ्त में उनका कर ।

अपने सपने को पूरा करने,
मेहनत मैंने जी तोड़ की ।
हर एग्जाम में अच्छा रहा,
और दसवीं भी टॉप की ।

फिर पापा ने बोला मुझसे,
बेटा कोटा जाकर पढ़ ।
कोचिंग मिलेगी अच्छी वहां पर,
बन जाएगा तेरा कल ।

बात उनकी मान कर,
मैं बैग ले अपना चल पड़ा ।
सपने अपने पूरे करने,
मैं था एक अंजान शहर में खड़ा। 

गहरी सांस ली मैंने,
आगे था बढ़ चला ।
लाखों की इस भीड़ में,
मैं भी शामिल हो गया ।

यहां पर आकर जाना मैंने,
था मैं मेंढक कुएं का ।
पड़े हुए हैं कई धुरंधर,
मुझसे भी बड़े यहां ।

पर खुद को हिम्मत दे कर मैं,
मंजिल की ओर बढ़ चला ।
कमियां अपनी ढूंढ कर,
उनको सुधारने में लग गया ।

बीतते हुए वक्त के साथ,
निराशा मेरी थी बढ़ रही ।
लेकिन अपनी हिम्मत मैं,
अब तक था हारा नहीं ।

दो साल हो गए थे मुझे,
बारहवीं पास किए हुए ।
इस बार मेहनत जी तोड़ की,
अपने लक्ष्य को पाने के लिए ।

किस्मत ने था साथ दिया,
इस बार मेरा सिलेक्शन हुआ ।
लेकिन अचानक ही वो पलट गई,
क्योंकि पेपर था लीक हो गया ।

मेरी सारी मेहनत अब,
बेकार होती दिखी मुझे ।
माना बहुतों ने गलत किया लेकिन,
उसमें किया क्या था मैंने ।

मैंने तो मेहनत करके,
अपनी सीट हासिल की थी ।
अब लीक के नाम पर,
मेरी सीट चली गई ।

मेरे पापा ने खेत था बेचा,
ताकि मुझे पढ़ा सकें ।
दिन रात मेहनत करते रहें,
ताकि मेरी खातिर कमा सकें ।

4 साल तक ये सब चला,
और फिर मंजिल भी मिली ।
लेकिन वो हाथ में आकर,
फिर से हाथ से चली गई ।

अब कैसे कहूं मैं पापा से कि,
फिर से मेहनत करना होगा ।
कुछ नहीं कर सका मैं आपके लिए,
क्योंकि अब ये सब फिर मुझसे नहीं होगा ।

इस बात की क्या गारंटी है कि,
दुबारा कुछ ऐसा नहीं होगा ।
और फिर जो हुआ ऐसा तो,
मेरे और पापा के सपनों का क्या होगा ।

इसलिए अब सब कुछ छोड़,
मैं इस दुनिया से जा रहा हूं ।
बहुत दुख के साथ ये पत्र,
मैं अपने पापा को लिख रहा हूं ।

~देव श्रीवास्तव " दिव्यम " ✍️

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अंधकार, समाज का


सिसकारियां उसकी अब,
इन अंधेरों में हैं गूंज रहीं ।
खुद को ही संभाल रही वो,
और खुद में ही घुट रही ।

एक भयावह घटना ने,
उसका है ये हाल किया ।
पीड़ित थी वो फिर भी लोगों ने,
उससे ही सवाल किया ।

सवाल उठे कि उसने किया क्या, 
जो एक दरिंदा उससे आकर्षित हुआ ।
किसी ने दोष दिया कपड़ों को, 
किसी ने चरित्र को दूषित किया ।

चाहा था उसने पंख फैला,
ऊंचे आसमान में उड़ना ।
पर उससे छीन लिया गया,
वह आसमां ।

सपने थे उसके जितने भी,
एक रात में टूट गए ।
पंख भी उसके कुचले हुए,
और अपने भी हैं रूठ गए ।

अब जीवन उसका अंधकार में,
है धकेला जा चुका ।
गलती तेरी क्योंकि लड़की है तू, 
ये उसे बताया जा चुका ।

नियम इस संसार में,
कैसे हैं आ गए !
दोषियों को पीड़ित और,
पीड़ित दोषी बताए गए ।

अब बस इस समाज में, 
बदलाव को लाना होगा ।
हम सबको मिल कर इन,
नियमों को हटाना होगा ।

~ देव श्रीवास्तव " दिव्यम " ✍️

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दुविधा, श्री कृष्ण की

बैठा था मैं मंदिर में,
अश्रु लिए इन आंखों में।
रोकर मैं कह रहा था,
दुख सारे अपने सखा से।

इतने में आवाज पड़ी एक,
मेरे इन कानों में।
देखा तो सामने सखा थे बोल रहे,
और अश्रु थे उनकी आंखों में।

देख कर मुस्कान इन अधरों पर,
सोचते हो मैं खुश हूं बड़ा।
किंतु मुझसे पूछो कि इस ,
मुस्कान के पीछे क्या है छिपा।

कष्ट तो तुम अपने कह देते,
किंतु मुझसे पूछा क्या?
हाल मेरा क्या है यहां,
कभी तुमने ये सोचा क्या?

जन्म से पहले ही मेरा मामा,
था मेरा शत्रु बन गया।
मेरे जन्म से पहले ही, 
छः भाइयों का वध कर गया।

जेल में जन्मा था मैं,
एक राजकुमार निराला था।
मुझे बचाने को बाबा ने,
मुझे स्वयं से दूर कर डाला था।

भाग्य का खेल था जो,
मैं गोकुल पहुंचा था।
मैया यशोदा मां बनीं,
और नंद बाबा का मैं दुलारा था।

किंतु कंस का आतंक,
वहां भी मेरे पीछे रहा।
मुझे मारने के लिए वो,
हर प्रयत्न करता रहा।

पहले पूतना राक्षसी आई,
विषपान मुझे कराने को।
उसका वध किया था मैंने,
मुक्ति उसे दिलाने को।

फिर आया शकटासुर,
मन में मुझसे बैर लेकर।
हश्र किया मैंने उसका भी वैसा ही,
बैलगाड़ी उस पर फेंक कर।

और न जाने कितने ही असुर आए,
अंत मेरा बनने को।
और मैंने उनका अंत किया,
उनका ध्येय पूर्ण करने को।

कंस का तो फिर भी ठीक था,
शत्रु था वो बन गया।
लेकिन इंद्र भी उससे,
पीछे कहां रह गया।

परीक्षा लेने मेरी उसने,
वर्षा यहां घनघोर की।
गोवर्धन गिरी उठा कर मैंने,
सबकी तब रक्षा की थी।

कालिया नाग ने भी आकर,
विष अपना फैलाया था।
उसका भी दमन तय था किंतु,
उसकी पत्नियों ने उसे बचाया था।

इसी तरह बचपन बिता मेरा,
दाऊ के संग मैं खेला था।
बरसाना में मिली थी राधा,
जिससे मुझको प्रेम हुआ था।

फिर आया वो भी समय,
जब मैं 16 साल का था।
कंस ने मुझे मारने को,
षड्यंत्र एक रचाया था।

पहुंचा मैं वहां दाऊ संग,
था कंस का वध किया।
मां देवकी, पिता वासुदेव को,
फिर कारागार से मुक्त किया।

फिर मैं वापस कभी भी,
गोकुल न जा सका।
मित्रों का भी साथ छूटा,
प्रेम को भी अपने ना पा सका।

दक्ष मैं सोलह कलाओं में,
द्वंद्व युद्ध में माहिर था ।
किंतु भाग्य के आगे मैं भी,
तुम सबकी तरह ही विचलित था ।

काल्यवन का वध करने,
जब मैंने रण को छोड़ा था ।
संसार ने तब मुझको,
रणछोड़ कह मुंह मोड़ा था ।

16000 हैं मेरी रानियां,
इसलिए मैं अपमानित हुआ ।
किंतु क्या गलत किया था मैंने जो,
उन्हें नरकासुर के यातनाओं से मुक्त किया ।

महाभारत के युद्ध को रोकने, 
का था अथक प्रयास किया ।
ये ही नहीं, निहत्था ही रहूंगा, 
इस बात का भी था प्रण लिया ।

किंतु माता गांधारी ने, 
केवल मुझको दोष दिया ।
श्राप दिया था ऐसा मुझको, 
कि मेरे पूरे कुल का अंत किया ।

लेटा हुआ था आँखें मूंदें,
शीतल हवा का लेने आनंद ।
आ लगा एक तीर मेरे पग में, 
कर दिया प्राणों का हनन ।

जीवन था मेरा दुखों से भरा, 
मृत्यु भी वैसी हो गई।
जिस द्वारका को रचा था मैंने, 
मुझ संग ही वो भी डूब गई।

अब बताओ सखा मेरे,
किसका दुख है कितना बड़ा।
प्रश्न उनके सुन कर मैं,
कुछ भी न बोल सका।

~ देव श्रीवास्तव ✍

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My Shattered Heart



What can I say today, my heart is broken in pain,
I'm lost for words, and cannot express my strain.

We met by chance, on unfamiliar roads,
And my bad times were sweetened by your gentle abodes.

You unlocked my heart, and entered with ease,
In my barren soul, you brought life to please.

You showered love like rain, on my desert heart,
And asked to stay with me, never to depart.

But one day, you suddenly ended it all,
Leaving me restless, with a shattered wall.

I know you're unhappy too, yet I must confess,
Returning to the past is not an easy progress.

Neither of us is wrong, yet this is our fate,
You'll move on, but I remain, in this broken state.

Why did you enter my heart, if you had to leave?
Why make me accustomed to your love, and then deceive?

Your presence or absence never bothered me,
But losing you became my greatest anxiety.

No matter the wound, I never shed a tear,
But when you left, my eyes were filled with sorrow and fear.

Now you're suffering too, in your own pain,
And I'm standing here, with a heart in vain.

My fears came true, and I feel deceived,
But no more tears will fall, my heart is relieved.

No one will occupy my heart again,
The wounds will heal, but the scars will remain.

~ Dev Srivastava ✍️

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उस शहर की हवाएं


आज फिर उस शहर से गुजरा,
जहां हम मिले थें कभी ।
उसकी हवाओं में तुम्हारी,
बसी हैं यादें आज भी ।

महसूस किया उन हवाओं को,
तो याद आई कहानी पुरानी ।
वो हमारा पवित्र प्रेम जो,
इस जहां के लिए था बेइमानी ।

वो मिलना हमारा, 
छिप छिप कर सबसे ।
वो बातें करना, 
बहानों के जरिए ।

वो गुजरना मेरा, 
तेरे घर के सामने से ।
वो आना तेरा, 
मुझसे नोट्स लेने ।

वो कसमें वो वादें,
जो किए थें हमने साथ में ।
अब तो वो बातें,
रह गईं बस याद में ।

डोली जब उठी थी तुम्हारी,
ये हवाएं थी साथी मेरी ।
आंसू मेरे पोंछ कर,
मानो पीठ थपथपाती मेरी ।

बातें तुमसे करने को आज,
ये दिल बेकरार हो उठा ।
आज फिर इन हवाओं में,
हमारा प्यार महक उठा ।

देख कर उन गलियों को,
याद आया हंसना तुम्हारा ।
हर एक मोड़ से गुजरते हुए,
दिख रहा था चेहरा तुम्हारा ।

उस शहर की हवाएं,
जैसे सांसें हैं तुम्हारी ।
उस शहर की जान,
मानो बातें हैं तुम्हारी ।

दिल की धड़कनों में,
बस यादें हैं तुम्हारी ।
मेरे इन सांसों में,
बस सांसें हैं तुम्हारी ।

दिल की गहराइयों में,
बसी हो तुम जैसे ।
कोई और ना कभी,
बस पाएगा ऐसे ।

मन में ख्याल आया,
बातें करूं मैं तुमसे ।
पर अब तो सिर्फ सपनों में,
होती है मुलाकातें तुमसे ।

भूल गया था मैं जान बूझ कर,
इस शहर को, इन हवाओं को ।
पर कैसे भुलाऊं मैं तेरे साथ बिताए,
वो पल और उन यादों को ।

अब इन हवाओं से है बस,
इतनी सी गुजारिश ।
कि पहुंचा दें उस रब तक,
मेरे दिल की ये ख्वाहिश ।

ये जन्म था तेरा,
भले ही किसी और के लिए ।
लेकिन अब हर जन्म,
हम दोनों हों एक दूजे के लिए ।

और इसी के साथ एक, 
हवा का झोका आया ऐसे ।
सुन कर मेरी बातों को,
दे रहा हो आश्वासन जैसे ।

~ देव श्रीवास्तव " दिव्यम " ✍️

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Dil me teri hi Surat basi hai
Teri hi tarah Tera gham bhi hansi hai
Kaise rahoon khush tere bina
Meri har khushi tujhse hi Judi hai
- Dev Srivastava✍️

Kahne ko khuli kitab hoon main,
Tumhare man ke alfaz hoon main.
Kabhi meri zindagi me jhank kar to dekho,
Janoge kitna bada Raaz hoon main.
- Dev Srivastava✍️

Mohabbat to tujhse toot kar ki thi
Per tu uske kabil na thi
Shikwa bhi bhala kya karen
Teri Mohabbat humen hasil hi na thi
~ Dev Srivastava " Divyam " ✍️

Toote dil fir juda nhi karte
Mare huye log dobara zinda nhi hote
Kitni haseen hoti ye zindagi
Agar hum tum mil kar kabhi bichhde nhi hote.
~ Dev Srivastava " Divyam " ✍️