अंधकार, समाज का
सिसकारियां उसकी अब,
इन अंधेरों में हैं गूंज रहीं ।
खुद को ही संभाल रही वो,
और खुद में ही घुट रही ।
एक भयावह घटना ने,
उसका है ये हाल किया ।
पीड़ित थी वो फिर भी लोगों ने,
उससे ही सवाल किया ।
सवाल उठे कि उसने किया क्या,
जो एक दरिंदा उससे आकर्षित हुआ ।
किसी ने दोष दिया कपड़ों को,
किसी ने चरित्र को दूषित किया ।
चाहा था उसने पंख फैला,
ऊंचे आसमान में उड़ना ।
पर उससे छीन लिया गया,
वह आसमां ।
सपने थे उसके जितने भी,
एक रात में टूट गए ।
पंख भी उसके कुचले हुए,
और अपने भी हैं रूठ गए ।
अब जीवन उसका अंधकार में,
है धकेला जा चुका ।
गलती तेरी क्योंकि लड़की है तू,
ये उसे बताया जा चुका ।
नियम इस संसार में,
कैसे हैं आ गए !
दोषियों को पीड़ित और,
पीड़ित दोषी बताए गए ।
अब बस इस समाज में,
बदलाव को लाना होगा ।
हम सबको मिल कर इन,
नियमों को हटाना होगा ।
~ देव श्रीवास्तव " दिव्यम " ✍️