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shalini Gupta

shalini Gupta

@shalinigupta


लोगों की बौद्धिक चेतना से
हमारे अंतःमन को साझा
करना पड़ता है
जो नियति में लिखा है
वो होके ही रहेगा
ये पाठ पढ़ाकर हमें
अंतर्मन को समझा
लेने कहा जाता है,
और जीवन पर्यन्त
मन , मस्तिष्क और
नियति के बीच
इसी असमंजस में
व्यतीत हो जाता है कि
क्या यही नियती थी
या फिर अंतः मन की
सुनती और इच्छा को
जीवित रखती तो
नियती कुछ और होती
अंततः सही गलत की
नासमझी के बीच वो
सहन करना पड़ता है
जो कभी कल्पनाओं में
भी आसहनीय हुआ
करता था...

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एक जंगली पौधा सा है "उम्मीदें"...
बिना देखभाल के जी जाते हैं
बिना सहारे के तने रहते हैं
तेज़ हवाओ से भी टूटते नहीं
उगते वहीं जहाँ रोपा नहीं गया ,
खिले वहीं जहाँ कुछ न मिला,
किसी के कर्कश बातों से आहत होके,
सुख गए शब्द,आंसू और भाव मन के,
बची रह जाती है तो बस "उम्मीद"
ये स्मृतियों के जल से सींची जा रही,
तभी, ना चाहें तो भी बढ़ती जा रही

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