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आज फिर देखा ख़ुद को... उन ऊंचाईयों को छूते हुए... अपने सपने पूरे करते हुए... ख़ुद को अपनी मेहनत में खुश रहते हुए... समझते हुए... संभलते हुए... सबको अपनी कहानी समझाते हुए... दास्तां सुनाते हुए... जीते हुए... जीना सिखाते हुए... पर क्या मतलब इन सब का... देखा जो मैंने सब है तो महज़ एक सपना... #smilingvriksh #kavyostav -2
निठल्ला मैं जो रहता हूँ दोष दूँ भी तो किसको किस्मत का हिसाब अजीब है मेरे कोसता रहूँ मैं जिसको खामखां लफ़्ज़ थक जाते हैं मैं लिखता हर ठोकर मुस्कुराता रोज़ दिखता मैं मुस्कुराहट को खोकर किस्मत बुरी नहीं है मेरी मैं गलत समय पर जगता हूँ रोता हूँ, आँसू पोंछता हूँ फिर सब शुरू से करने लगता हूँ #KAVYOSTAV -2
बेटी... झूठा समाज... समाज का दोगलापन... #FUTURE_ENGINEER #smilingvriksh
Mess se khana khaakar apne kamre mein pahuncha. jute utarkar jaise main apne bistar pe leta tha ki kisi unknown no. se call dekha. thoda ajraj mein padkar maine use wapis call kiya to ek jaani pehchaani si aawaz sunai padi. apni yaddasht ko usse milane ki koshish kara jab to ek chehra dikha, jaana pehchaana sa. pahle hi shabd mein wo puraana pyar chhalak gaya tha jo hum dosto ke gusse aur khushi ki jhalak thi. main apne vartman mein fir se wapis lauta aur khushi se mera chehra bhara mila mujhe. bade saalon baad maine uski aawaz suni thi aur uski pahli gaali ne hostel un 2 saalon ki saari yaadon ko badi tezi se aankhon ke saamne se guzar diya. wo subah ki workout, shaam ke khelon mein saath milna, mess mein dhimi aawaz mein kari chugliyan aur mazaak, raat ko sone se pahli ki baatein aur dusron ke secret pe man hi man hanskar use santvana dene ka silsila bada hi khushnuma tha. achanak hi 2-4 aur sushabdon ke prahar ne mujhe apne vastivka mein dhakel diya.
आज वो फिर अकेला बड़बड़ाता हुआ उसी गरम रास्ते पर चला जा रहा था। कभी ऊपर देख कर कुछ कह रहा था। कभी मन ही मन गुस्से में ऊपर वाले के सम्मान में चंद शब्द गढ़े जा रहा था। वो खाली पड़ा रास्ता उसे बिना देखे चले जाने में मदद कर रहा था। खुले आसमान से धूप उसकी त्वचा परख रही थी। सूरज सर पर था और वो मन ही मन कुछ बोलता अपने घर की ओर चल रहा था। दरअसल वो अपने घर नहीं किसी और के घर रहता था। वो अपने खर्च के आये पैसों में से कुछ, उस कमरे के किराए के लिए देता था जहाँ वो 3 महीने से रह रहा था। वहाँ उस शहर में वो पढ़ने आया था। अपने सपने साकार करने की होड़ में वो भी अपने हाथ पांव चलाने आया था। पर शायद वो भी अब उस शहर की उन्ही आदतों से बंधने लगा था। बेवजह परेशान होना, छोटी बातों में हताश होना अब उसके बर्ताव में भी दिखने लगा था। उस दिन भी वो इसी तरह की परेशानी से बाहर आने की कोशिश में था। वो उस तपती धूप में चला जा रहा था और अपने मन की बातें खुद ही को सुनाए जा रहा था। वो कुछ परेशान था, शायद थोड़ा भ्रमित था अपनी बर्ताव को लेकर। पर ये सोचने का सिलसिला ज़्यादा देर ना चला। हमेशा की तरह उसने फिर कुछ जल्दी ही नाकाम होने वाली योजना बनाई। उसने अपने आप को समझाने के उद्देश्य से हाथ हिलाते हुए कुछ बातें मन में दोहराई। और फिर वो खुद की हाँ में हामी भरते हुए खुशी से कदम जल्दी जल्दी घर की दिशा में चलाने लगा। इस बार भी वो खुश होकर अपने सपने में भविष्य की अपनी उड़ानों को सजाने लगा। और उस सड़क को अपने लंबे कदमों से नापते हुए पार कर अपने कमरे की और चल दिया। अपने कमरे में पहुँचते पहुँचते उसने हल्की सी मुस्कान के साथ ऊपर देखा और धन्यवाद देकर चैन से सो गया।
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