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मुझे आज़माना छोड़ दो तुम दिल दुखाना छोड़ दो ये दूरी अच्छी नहीं जानाँ तुम दूर जाना छोड़ दो ------------- -सन्तोष दौनेरिया
रुख़ से नक़ाब हटा जानाँ चेहरा जरा दिखा जानाँ फ़ना होने की हसरत है नज़रें जरा मिला जानाँ ---------------- -सन्तोष दौनेरिया
बात जब उनकी आती है, ज़बाँ मेरी ख़ामोश हो जाती है ख़्वाब आँखों में आते हैं और नज़र मदहोश हो जाती है ------------------ -सन्तोष दौनेरिया .
मेंहदी लगाने भर का ख़्याल उनको जो आया खिल उठा रंग-ए-हिना हाथों में लगने से पहले --------------------- -सन्तोष दौनेरिया .
इस बज़्म में हैं सुख़नवर बहुत ही अच्छे मगर आपकी तो कुछ अलग ही बात है मैं आपकी क़लम की क्या तारीफ़ करूं क़लम के हर लफ़्ज़ रूह-ए-कायनात हैं --------------------- -सन्तोष दौनेरिया (बज़्म - सभा, सुख़नवर - कवि, लफ़्ज़ - शब्द, रूह-ए-कायनात - संसार की आत्मा) .
हसीं चेहरे पे कमाल आँखें आपकी ये बेमिसाल आँखें ख़ुदा बचाए मस्त आँखें से करेंगी जीना मुहाल आँखें --------------------- -सन्तोष दौनेरिया .
इश्क़ क्या चीज है, यारा बता क्या कहें हसीं बला कहें या ख़ूबसूरत ख़ता कहें अपनी - अपनी सभी की समझ है यार कुछ लोग अच्छा तो कुछ इसे बुरा कहें सुन के अन सुना करते हैं दिल की बात अब उनको बेवफ़ा कहें या बावफ़ा कहें झूमते है हम उनकी नज़र से मय पीकर इन आंखों को अच्छा कहें कि बुरा कहें --------------------- -सन्तोष दौनेरिया .
बात प्यार की ------------- ये रुत हसीं ये दिल जवाँ, कही भी बात प्यार की, आपने सुनी नहीं मगर, ये बात मेरे प्यार की। रही बद-नशीबी बहुत, जो सुनी नहीं मेरी सदा, ये बात मेरे प्यार की। बुझी बुझी सी हर गली, बुझी है राह प्यार की, आ भी जा इस तरफ़, खिले कली बहार की। कही थी बात प्यार की, आपने सुनी नहीं मगर, ये बात मेरे प्यार की। चुप्पियों के लफ़्ज से, कही थी बात प्यार की, तुम्हें मगर फ़ु'र्सतें कहां, सुनते जो बात प्यार की। कही थी बात प्यार की, सुनी नहीं मगर मेरी, बात मेरे प्यार की। --------------------- -सन्तोष दौनेरिया .
शरद पूर्णिमा ---------------- रात आसमाँ का चाँद देखा तो मालूम हुआ ज़मीन का चाँद तो कहीं ज़्यादा हसीन है --------------------- -सन्तोष दौनेरिया .
इत्तिफ़ाक़न ही एक इत्तिफ़ाक़ हो गया इत्तिफ़ाक़ से वो मेरे नज़दीक आ गया --------------------- -सन्तोष दौनेरिया
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