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sick of crying tired of trying yes I am smiling but inside I am dying.....
कभी यूँ भी हो तुम करो मेरा इंतजार.. जब भी तेज हवा का झोंका खोले खिड़की के पट तुम बरबस देखो उस ओर, शायद मैं वहाँ तो नहीं... और मैं.... मैं बहती जाऊं हवाओं संग दूर....बहुत दूर महसूस करो मिट्टी से उठती, सौंधी सुगंध में मेरी महक ..और मैं... मैं दूर किसी उपवन में एक नन्ही सी कली पर चमकती रहूं बूंद बनकर और तुम.... तुम जागते रहो मेरे इंतज़ार में पूरी रात... जैसे में चाहती थी तुम जागो मेरे संग पर तुम्हें कहाँ पसंद है जागना !!! पास आते ही सोने लगते और मैं... जागने की लालसा लिये बार-बार आती पास तुम्हारे अब यूँ हो जागते रहो तुम मेरे लिए! और मैं.... मैं..... #priyavachhani #hindikavita
टूटे जब हर तरफ से, सुकूं कहीं मिल न पाए बिछड़े पुराने कुछ दोस्त आज बहुत याद आये.... दिन बीतेते मस्तियों में, शामें शरारतों में गुज़र जाती रात में सोने जाते जब, दिन भर की बातें याद आती यादों के बादल आज फिर उमड़ घुमड़ कर हैं छाए बिछड़े पुराने कुछ दोस्त आज बहुत याद आये .... काश ! वो दिन , वो दोस्त फिर से लौट आएं टूटी है जो मन की दीवार, वो फिर से जुड़ जाए लौट जाएं उन्हीं गलियों में, जहां बचपन के दिन बिताए बिछड़े कुछ पुराने दोस्त आज बहुत याद आये .... बिछड़े कुछ पुराने दोस्त आज बहुत याद आये। -Priya Vachhani
"अहसास" एक छोटे ख़्वाब के लिए भटकती रही न जाने कितने वर्षों तक कभी घबराहट में उकता गई कभी तन्हाई में खुद से बातें करती रही कभी आंसू भी बह आये शब्द बनकर तो कभी आंखों से खुशियों की बरसात भी हुई कभी पूर्व से निकले चांद ने भी चिढ़ाया पर कभी समझा न सकी मैं अपने दिल को ही सपने आखिर सपने होते हैं जो बंद आंखों में ही समाते हैं और आंख खुलते ही बचता है सिर्फ अहसास.... #priyavachhani
स्त्रियों को पसंद होती है चाय अक्सर दिख जाते है उनके हाथ में कप घर आने वालों से जरूर पूछती है चाय चाय लगती उन्हें अपनी सी संस्कारों की पत्ती उबाल वाणी की मिठास घोल आत्मसमान की अदरक देह की इलाइची कूटकर ससुराल नामक दूध में घुल भुला देती अपना अस्तित्व और फिर जब तब दिख जाती है हाथ में लिए गर्मागर्म चाय का कप फूंक से उड़ाती भाप संग उड़ाती अपनी आहें। -Priya Vachhani
अश्क बन आंखों पर ठहरे होते हैं जो रिश्ते जो बहुत गहरे होते हैं। -Priya Vachhani
अक्सर कुछ सोचती हुई पाई जाती हैं मांए हां....अक्सर कुछ सोचती हुई पाई जाती है क्या गलत और क्या है सही !! वह गलत है जो मैंने सहा अब तक !! या वह.. जो चाहती है उनकी बेटियां ना सहें वह हर गलत बात , जिसे उन्होंने चुपचाप सहा वह हर ताना... जिसे किया सुना अनसुना वह हर सितम, जिसे अपनी किस्मत माना ऐसे ही सिखाए अपनी बच्ची को गृहस्ती चलाना !! यां सिखाएं उन्हें गलत के खिलाफ आवाज उठाना !! पर फिर भी, सब कहां सिखा पाती हैं !! कहां उसे भी पूरी आजादी दे पाती हैं !! फिर हवाला दे रिश्तों, गृहस्थी का घर की इज्जत बचाने का उसे भी तो वही सब सहने को मजबूर कर जाती है फिर सोचती क्या मैं गलत !! या मैं सही !! बस अक्सर सोचती ही रहती है हां ...अक्सर सोचती हुई पाई जाती है मांए.. #priyavachhani
सुनो और कुछ तो नही खोया मैंने इक तुम्हें खोने के बाद बस ज़रा लबों से हँसी खो गयी नींद तो आती है मगर कहीं सपने खो गए दिल तो दे गए तुम वापस मगर उसके अरमां खो गए प्यार तो अब भी है मगर बस अहसास खो गए आँसू तो बेइंतिहा हैं मगर फिर भी न जाने किसकी तलाश है इन आंखों को फूलों की खुशबू तो बसी है फ़िज़ाओं में मगर सांसे ढूंढती हैं उसी महक को यूं भी नही के सब खो गया है कुछ पाया भी है होंठो को मिली भीगी मुस्कान मिला यादों का ज़खीरा ओस में भीगे अरमान गजब का मिला अकेलापन और बेमुरव्वत सी तन्हाईयां भी साथ चलती हैं अब मुहब्बत में मिली रुआवाईयाँ भी यूं भी नही के सब खोया है मैंने एक तुम्हें खोने के बाद हाँ बहुत कुछ पाया भी है बस एक तुम्हें न पाकर प्रिया
खुद से ही अपने आँसू छुपा रहे हैं कैसे कहें बिटिया हम कैसे तेरी विदाई का सामान बना रहे हैं.... हर पल डर रहता है कहीं कोई कमी न रह जाए कमी होने से ससुराल में तुझे कुछ सुनना न पड़ जाए कहीं सोच पापा की परेशानी, तू अपना मन न मार जाए ज़माने भर की खुशियां तेरे कदमो में लुटाना चाह रहे हैं कैसे कहें बिटिया कैसे तेरी विदाई का सामान बना रहे हैं .... आज तक प्राइस टेग देखनी वाली तेरी माँ आज बस तेरी ही खुशीयों को देख रही है मन की हर इच्छा पूरी करे तू बस यही सोच रही है पापा भी तेरी पसंद का हर सामान दिलाना चाह रहे हैं कैसे कहें बिटिया कैसे तेरी विदाई का सामान बना रहे हैं .... जब मजाक - मजाक में लोग तुझसे कहते हैं कितने दिन हैं शादी में, गिना तुझे चिढ़ाते रहते हैं.... सोच तेरी विदाई के क्षण हमारा मन सिहर जाता है बेटी की विदाई का दर्द ,बेटी वाला ही समझ पाता है लाख जतन करें फिर भी नयनों के कोर भीगे जा रहे हैं कैसे कहें बिटिया कैसे तेरी विदाई का सामान बना रहे हैं .... दुनियां की रस्मों को निभाना भी जरूरी है बेटी की विदाई माँ - बाप की मजबूरी है पर इतना याद रखना घर से विदा होगी तू कभी न हमारे दिल से जुदा होगी तू बेटी संग हम दामाद के रूप में बेटा पा रहे हैं कैसे कहें बिटिया कैसे तेरी विदाई का सामान बना रहे हैं .... प्रिया वच्छानी #बेटीकीविदाई #माँपापा #दहेज #विदाईकीतैयारी
खामोश छत दरकती दीवारें घुटती हुई चौखट शोर मचाते बर्तन कांटो के बोझ तले फूल मुरझाया सा सूरज खिसकती जड़ो की मिट्टी बदला बदला सा है सबकुछ न जानें क्यों पहले से अब वो मंजर नहीं रहे घर अब घर नहीं रहे। प्रिया
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